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अनुसन्धान-५९
श्रीसिद्धसेन दिवाकरजीना
केवलज्ञान - दर्शन अंगेना मन्तव्य विशे विचारणा
मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
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आत्मिक विकासनी उत्कृष्ट भूमिकाओ प्राप्त थती ज्ञानशक्ति जैन दार्शनिक परिभाषा प्रमाणे 'केवलज्ञान' तरीके ओळखाय छे. 'केवलज्ञान' अ नाम ज सूचवे छे तेम आ ज्ञानशक्ति प्राप्त थया पछी केवल ज्ञान ज प्रवर्ते छे, कोई पण वस्तु के धर्म विषे सहेज पण अज्ञान रहेतुं नथी. अर्थात् आत्मा आ शक्ति द्वारा विश्वना त्रणे कालना सघळाये पदार्थो अने तेमना तमाम धर्मोनो बोध करे छे. बोध करवा माटे आत्मा आ शक्तिने बे रीते प्रयोजे छे : १. तमाम वस्तु-धर्मोने जाणवामां, २. तमाम वस्तु- धर्मोने जोवामां. आत्मानुं आ जाणवुं (-बोधक्रिया) पण 'केवलज्ञान' कहेवाय छे अने जोवुं (-साक्षात्कारक्रिया) 'केवलदर्शन' गणाय छे.
उपर जणाव्युं तेम सकल पदार्थोना बोधनी शक्ति अने सकल पदार्थोनो बोध बन्ने ‘केवलज्ञान' गणाय छे. तेनुं कारण से छे के 'ज्ञान' शब्द जैन प्रमाणव्यवस्था मुजब ओक करतां वधु अर्थ धरावे छे. १. बोध - उत्पादक शक्ति २. अ शक्ति द्वारा प्रवर्तती बोध माटेनी क्रिया ३. ओ क्रियाजन्य बोध ४. वस्तुना अनेक अंशोनो अथवा वस्तुनी हेयता - उपादेयतानो ग्राहक बोधविशेष ५. बोधात्मक उपयोग. २
हवे, केवलज्ञानी महात्मा केवलज्ञान अने केवलदर्शन धरावता होय ओम तमाम जैनाचार्यो माने ज छे. परन्तु आ ज्ञान-दर्शन ओक ज धर्मना बे नाम छे के बन्ने भिन्न धर्मो छे ? आ मुद्दे जैनाचार्योमां विचारभेद छे. ओटलुं ज नहीं पण, अ बन्ने धर्मो भिन्न होय तो पण ओ बन्ने अक साथे वर्ते छे के अलग-अलग समये ? अ मुद्दे पण जैनाचार्यो जुदा-जुदा विचारो धरावे छे.
शास्त्रीय परिपाटीने अनुसरनारा आचार्यो केवलज्ञान-दर्शनने परस्पर पृथक् धर्मो गणे छे. तेओना मते आ धर्मो क्रमशः प्रवर्ते छे. आ मत 'क्रमवाद' गणाय छे. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण आ मतना प्रबल समर्थक छे.