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________________ मई २०११ १०१ पररूप होय तो 'स्यादस्त्येव स्यान्नाऽस्त्येव च' भांगो आवे. अने आवा बे विकल्पो के जेमां ओक स्वरूप होय अने अेक पररूप होय अने ओ बे विकल्पोने सांकळीने अेक विकल्प जेवो बनावी प्रश्न पूछवामां आवे, जेमके काळा अने गोळ घडाने उद्देशीने 'घडो लालगोळ छे ?', तो ओ ओक विकल्प फक्त स्वरूप पण नहीं होवाथी अने फक्त पररुप पण नहीं होवाथी 'स्यादवक्तव्यमेव' भांगो जवाबमां आवे. ढूंकमां, सप्तभंगीना ३-७ भांगा माटे विविध अंशो होवा अनिवार्य छे. "हवे, अर्थपर्यायो तो अनेक अंशात्मक होय छे (जेमके संस्थान, वर्ण, रस, क्षेत्रजन्यत्व व.) अने तेथी तेमां आ भांगा सम्भवे. पण व्यंजनपर्याय तो वाच्यतारूप ओक ज अंशात्मक होवाथी, अने बे विकल्पोवाळा प्रश्न माटे बे अंश जरूरी होवाथी तेमां बे विकल्पोवाळो प्रश्न ज संभवतो नथी (जेमके घडो घटपदवाच्य अने पटपदवाच्य छे ?) अने जो ओ न संभवे तो जेना माटे बे अंशोना बे विकल्पोवाळो प्रश्न होवो अनिवार्य छे ओवो अवक्तव्यभंग पण त्यां केवी रीते रचाय ? “२. अर्थपर्यायो जे विविध अंशोमां समाय छे ते विविध अंशोमांथी कोई बे के तेथी वधु अंशोना विशिष्ट विकल्पो साथेना पदार्थनी जरूर पडे तेम बने छे. जेमके कोइक प्रयोजन काळा (-वर्णधर्मनो विकल्प) अने गोळ (-संस्थानधर्मनो विकल्प) घडाथी ज सरे तेम होय. अने माटे आपणे प्रश्न पण पूछवानो थाय के 'घडो गोळकाळो छे ?' अने घडो लालगोळ होय तो जवाब आपवानो थाय के 'स्यादवक्तव्यमेव'. पण व्यंजनपर्याय तो स्वयं अक ज अंशरूप छे. तेथी तेमां कोई दिवस बे विकल्पोनुं प्रयोजन ज ऊभुं नथी थतुं. अने जो ओ न थाय तो बे विकल्पोवाळा प्रश्नना अभावे अवक्तव्यभांगो पण कई रीते रचावानो ? “३. व्यंजनपर्यायमां तमाम प्रश्नो अने उत्तरो वाच्यतामां पर्यवसान पामे छे. तेथी 'घटोऽस्ति न वा ?' ओ प्रश्ननो व्यंजनपर्यायसम्बन्धे मतलब थाय 'घटपदवाच्योऽस्ति न वा ?'. अने भांगा पण आम रचाय : 'स्यादस्त्येव घटपदवाच्यः, स्यान्नाऽस्त्येव घटपदवाच्यः, स्यादवक्तव्य एव घटपदवाच्यः...' आमां अवक्तव्य भांगामां अक बाजु घटपदवाच्य कहेवू अने बीजी बाजु
SR No.229674
Book TitleSanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokyamandanvijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size367 KB
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