SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० अनुसन्धान-५५ हवे आपणे सप्तभंगीविंशिका (-अभयशेखरसूरिजीकृत) गाथा १५-१९ (सविवेचन)मां दर्शावायेलो आ गाथानो भावार्थ तपासीशं. आ भावार्थ आम तो द्रव्यगुणपर्यायरास-स्तबकगत विवरणमांना प्रथम अर्थने ज अनुसरे छे, छतां त्यां ओक नवी वात ओ छे के तेमां व्यंजनपर्यायमां त्रीजो भंग केम न आवे तेनी अतिविस्तृत चर्चा करवामां आवी छे, के जे मुख्यत्वे वास्तविकताने बदले कल्पना पर आधारित छे. आ चर्चाने तपासवा माटे तेनुं सम्पूर्ण उद्धरण तो शक्य नथी, माटे आपणे तेना मुख्य मुद्दाओ ज जोइशं. आ मुद्दाओ तारवती वखते चर्चाना हार्दने हानि न पहोंचे तेनुं पूरतुं ध्यान राखवामां आव्युं छे. "अर्थपर्याय अटले वस्तुमां जेने लीधे कोइक क्रिया करवानुं सामर्थ्य आवे ते धर्मो- मृन्मयत्व, वृत्ताकार, रक्तवर्ण वगेरे अने व्यंजनपर्याय अटले ते ते पदार्थमां रहेली ते ते शब्दथी निरूपित वाच्यता. आ बन्ने पर्यायो घणा बधा कारणे परस्पर अत्यन्त भिन्न छे. अर्थपर्यायमां सप्तभंगी सर्जाय छे अने व्यंजनपर्यायमां विधिरूप अने निषेधरूप अम बे भांगा ज थाय छे. "हवे आ व्यंजनपर्यायोमां त्रीजो भांगो केम न आवे तेनां त्रण कारणो छे : १. सप्तभंगी हमेशां विशदबुद्धि श्रोतानी अपेक्षाओ ज प्रतिपादित थाय छे, मन्दबुद्धिनी अपेक्षाओ नहीं. हवे विशदबुद्धि श्रोता पोतानी मेधाथी ज स्वयं अटलुं समजी ले छे के 'घडो काळो होय तो लाल न होय, चोरस होय तो गोळ न होय.' आथी वस्तुस्वरुपना अंशभूत ओक धर्मना बे विकल्पो' विशे तेने संशय थतो नथी. पण बे धर्मना बे विकल्पो विशे तेने संशय थई शके छे. मतलब के 'घडो लाल अने काळो छ ?, घडो चोरस अने गोळ छे ?' आवा संशयो तेने न थाय, पण 'घडो लाल अने चोरस छे ? घडो काळो अने गोळ छे ?' आवा ज संशयो तेने संभवे. आ संशयमां जो बन्ने विकल्पो स्वरूप (-घटनिष्ठ) होय तो जवाबमां 'स्यादस्त्येव' भांगो आवे. जो बन्ने पररूप होय तो 'स्यान्नाऽस्त्येव' भांगो आवे. जो ओक स्वरुप होय अने ओक १. संस्थान, वर्ण, क्षेत्रजन्यत्व, उपादानद्रव्य वगेरे ओक वस्तुना मूळभूत अंशो छे. अने चोरस गोळ, लाल-काळो, अमदावादी-खंभाती, माटीनो-सोनानो वगेरे ते ओक ओक अंशना विकल्परूप छे. आ विकल्पोमांथी अक साथे ओक वस्तुमां ओक ओक अंशनो ओक ज विकल्प संभवे - आवी व्यवस्था अत्रे स्वीकारवामां आवी छे.
SR No.229674
Book TitleSanmati Tarka Gatha 1 41 na Tatparya Vishe Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokyamandanvijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size367 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy