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मई २०११
मानवं मुश्केल छे. बल्के, नहीं होय अवं अनेक कारणे लागे छे – १. अर्थपर्याय अने व्यंजनपर्याय शब्दो जैन शास्त्रोमां बहु जुदा अर्थमां?
प्रयोजाया छे. आ शब्दोनो अनुक्रमे अर्थनय अने शब्दनय अवो अर्थ प्रायः बीजे कशे देखातो नथी. 'पर्याय' शब्दनो 'नय' अवो अर्थ
कल्पवो ज अघरो छे. २. सप्तभंगी संग्रह, व्यवहार अने ऋजुसूत्र -अम त्रण अर्थनयोथी सर्जाय छे.
माटे 'अर्थनयोने आश्रयी थती विचारणामां' सप्तभंगी थाय छे अम जणावयूँ होय तो 'अर्थनयो'ना वाचक शब्दने बहुवचन लगाडवू पडे. ज्यारे मूळगाथामां तो 'अत्थपज्जाए'मां अकवचन छे. 'वंजणपज्जाए' अंगे पण आ ज वात समजवी. आ बन्ने ठेकाणे सप्तमी विभक्तिनो अर्थ पण 'तदाश्रित विचारणा' ओवो क्लिष्ट करवो पडे छे. आवा अर्थपरक स्थाने
बहुमान्य तो तृतीया के पंचमी छे. ३. बीजा अर्थ वखते सविकल्प अने निर्विकल्पनो अर्थ अनुक्रमे सामान्य
अने विशेष थाय छे. आ शब्दो आवा अर्थमां भाग्ये ज बीजे कशे
वपराया हशे. __ अर्थनयाश्रित विचारणामां जे सप्तभंगी सर्जाय छे तेनुं विवरण आ पूर्वेनी
५ गाथामां करवामां आव्युं छे. (१.३६-४०) अने तेना उपसंहाररूपे आ गाथानो पूर्वार्ध मूकायो छे. तो उत्तरार्धमां जेनी वात छे ते व्यंजनपर्यायने सम्बन्धित सप्तभंगी के द्विभंगीनो उल्लेख के तेनुं विवरण आ पहेलानी के पछीनी गाथाओमां केम नथी मळतुं ? अर्थपर्यायना भांगा माटे ५ गाथा होय तो व्यंजनपर्याय माटे ओक पण नहीं ? आ वात ओम नथी सूचवती के आ पूर्वेनी गाथाओमांथी अन्य कोई रीते व्यंजनपर्यायने
सम्बन्धित भांगा शोधवा प्रयास करवो जोइ ? ५. टीकामां दर्शावायेलुं व्यंजनपर्यायमां सविकल्पत्व-निर्विकल्पत्व, त्रीजा
भांगानो सद्भाव-अभाव वगेरे बधुं ज कठिन तर्कजाळ पर आधारित छे. श्रीसिद्धसेनसूरिजीना समयमां तो वास्तविकता के वस्तुस्वरूपनी
विचारणा ज मुख्य बनती हती. आ रीते युक्तिजाळ पर आधारित प्रमेयोनुं १. आ अर्थ माटे जुओ पृ. १०७-१०८