________________
१४८
अनुसन्धान-५८
नि.-१७२ नी टीका). जो के जेम अत्यारे मुद्रित प्रतोमां 'सड्डी'ने सुधारीने ‘सेहो' (-शिष्य) करवामां आव्युं छे, तेम श्रीविनयविजयजीनी सामे जे आदर्श रह्यो हशे तेमां 'सेहो' पाठ होई शके. पण जेसलमेर अने पाटणनी प्राचीन ताडपत्रीय प्रतोमां तो 'सड्डी' ज पाठ छे.
ट्रंकमां, रोहगुप्त महागिरिजीना शिष्य न होय तो पण, ते श्रीगुप्ताचार्यना ज शिष्य हता ते नक्की करवुं अघरुं छे. बल्के उत्तराध्ययनवृत्तिगत उल्लेख परथी तो ते श्रीगुप्ताचार्यना स्थाने बीजा कोईना शिष्य होय ते नक्की थाय छे. माटे ओछामां ओछु, स्थविरावलीगत रोहगुप्तना महागिरिजीना शिष्य होवाना प्रतिपादन परत्वे ‘बीजे बधे तेमने श्रीगुप्ताचार्यना शिष्य कह्या छे' ओ रीते वांधो लई शकाय नहीं. हा, आ प्रतिपादनथी रोहगुप्तना सत्तासमयनी विसंगति अवश्य सर्जाय छे, पण ते विशे विचारीओ ते पूर्वे बीजी अक वात जोई लइओ.
स्थविरावलीकारे ज्यारे रोहगुप्तने महागिरिजीना शिष्य जणाव्या छे, त्यारे तेओने ओवा श्रीगुप्ताचार्यनो ख्याल होवो ज जोइओ के जे महागिरिजीना समकालीन अथवा अनुकालीन होय; कारण के रोहगुप्तने निह्नव तरीके जाहेर करनार श्रीगुप्ताचार्य छे. आ श्रीगुप्ताचार्य कोण होई शके ते विषे तपास करतां कल्प-स्थविरावलीमां ज तेनो जवाब मळी रहे छे. त्यां महागिरिजीना लघु गुरुबन्धु आर्यसुहस्तिसूरिना जे १२ पट्टशिष्योनां नाम जणावायां छे, तेमां अक 'श्रीगुप्त' नाम पण छे.
" थेरे अ अज्जरोहणे, भद्दजसे मेहगणी य कामिड्ढी । सुट्ठिय सुप्पडिबुद्धे, रक्खिय तह रोहगुत्ते य ॥ इसिगुत्ते सिरिगुत्ते, गणी य बंभे गणी य तह सोमे । दस दो अ गणहरा खलु, एए सीसा सुहत्थिस्स ॥"
आ श्रीगुप्ताचार्य हारितगोत्रीय अने चारणगणना आदिपुरुष छे.१ बनी
शके के तेओ रोहगुप्तना विद्यागुरु छे ओम स्थविरावलीकारना मनमां होय.
१.
“थेरेहिंतो णं सिरिगुत्तेहिंतो हारियसगुत्तेहिंतो इत्थ णं चारणगणे नामं गणे निग्गए" कल्प- स्थविरावली