________________
डिसेम्बर २०११
कविता कहण कहइ कर जोडि कोइ विद्वांस म देज्यो कोडि । कहि तणउ कहिवु नही मर्म महानुभावनु एहवु धर्म ॥८२॥ आगम अरथ गुहिर गंभीर बादर बोलि कहिउं ते हीर । लाभ छेहु जोइ सहु कोइ लाभ दीसइ ते बहुरइ लोइ ॥८३।। प्रीछया पाखइ तत्त्व विचार पालइ किम जिनधर्माचार । जलनिधि नंभ रर्संनइं चंद्रमा । रची चउपई वरस एहमा ॥८४|| सुविहित खरतर गच्छनु ईश श्रीधनवर्द्धनसूरिजि सीस ।। श्रीआणंदवर्द्धनसूरि विचार कहइं केवलि भाखिउं ते सार ॥८५॥ कविता नाम हरिं पातकी एक मात पणि बहु जातकी । इणि नाभिं अनंता हूआ एह जि जीव अनइ जूजूआ ॥८६।। इस्युं न जाणिं इणइ संसारि । मद मुंकीनइ कहुँ अवधारि । आगइ कवियण साल पसालि नाम कहिउं ते देखी वालि ॥८७॥ आणी भाव भणु चउपई । सुणिज्यो सहू एक मनां थई । आगम अरथ अनंत विचार कहिउ लवलेश न लाभुं पार ॥८८।। सवि हुं जाण्या तत्त्व विचार दृढ समकित जपिवु नवकार । ममता मुंकी समता धरु मुगतिवधू जिम लीलां वरु ॥८९।।
इति नवतत्त्व चउपई समाप्ता ॥
भद्रं भूयात् । संवत १६०८ वर्षे माह सुदि-१ भूमे लिखिता
श्री देवगुप्तसूरिगुरुणा ॥
कठिन शब्दोना अर्थ
अर्थ
शब्द सूखिम पढवी
सूक्ष्मपृथ्वीकाय स्थिर
थविर
आभूआ
अभ्रक