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________________ अनुसन्धान-५७ प्रथम द्वार ए बीजूं सुणेउ अभव्यजीव पाहिं अनंता गुणउ । द्रव्यप्रमाण हिव त्रीजुं द्वार चऊद राजमाहि शव कुंण वार ॥६८।। लोकत्तणउ असंख्यातु भाग मुगति भुंइरुं धीर ही माग । लख पणयाल जोयण वाटुली मुगतिक्षेत्रमाहिं तेह वली ॥६९॥ चउy द्वार कहुं फरसना सिद्धप्रदेश छई आकाशना । मध्य जोयण चउवीसे भागि सिद्ध रहिया छई छेहलइ मा(भा)गि ॥७०॥ क्षेत्र एह फरसना विशेस चिहु दिशि रुद्ध आकाश प्रदेश । दीपक तेज रुंधइ आकाश परसना सात प्रदेसी जास ॥७१॥ पंचम सिद्धतणु कहि काल सिद्धि गयु जीव आदि विशाल । मुगति क्षेत्रि छइं सिद्ध अनादि आदि न अंत नही बनी आदि ॥७२॥ अंतर द्वार छठें हिव कहिं सिद्ध टली वली सिद्ध जिनुहिं । सिद्ध अंतर नही सपतम द्वार केता मुगति छई सिद्ध न पार ॥७३॥ एक निगोद अनंतु भाग । जही पूछई तही एह जि वाग । अष्टम द्वार सिद्ध स्यइ भावि तेहू पंच प्रकार चलावि ॥७४।। राग रोसनुं कर्म जि नही उपशमक बीजुं ए रही । त्रीजुं क्षायोपशभिक पाव चउथु क्षायकवर जइ भाव ॥७५।। पांचमुं पारणामिक सही कर्म क्षप्यांतु शिवगति लही । भव्याभव न होई कदा जीव अजीव नही ए सदा ॥७६॥ क्षायिकनइ पारणामिक बेउ वर्तई भावि सदा सिद्ध तेउ । अलपबहुल नवम्युं ए द्वार तेह तणउ बोलु उद्धार ॥७७।। पुरुष नारि नपुंसक वेदि सिरज्या नही कीधा कुणि च्छेदि । तेह नपुंसक दीक्षा लहिं ते थोडा छइं सिवपुरि कहिं ॥७८।। तेहथी असंख नारिना जीव । ओहथी पुरुष असंख सदैव । लाख न किंचन आगलि कोडि सहस न कांई लाखह जोडि ॥७९॥ तिम नरनारि नपुंसक जाणि सिद्ध अनंत अच्छि निरवाण । ए नव द्वार अनइ नवतत्त्व सद्दहणा धरज्यो भुवि सत्व ॥८०॥ जीवादिक नवतत्त्व विचार जाणइ तेह समकित निरधार । आगमवयण न मानइ जेह अनंत भव रुलस्यइ नर तेह ॥८१॥
SR No.229670
Book TitleNavtattva Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size144 KB
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