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________________ डिसेम्बर २०११ ८७ लहिं संनीआ मोक्ष अखंच चारित भेद अछि जे पंच ॥५४॥ पहिला बिहुं चारित्रना धणी थाइं संसारिं रेवणी । यथाक्षात चारित्र जव लहइं मोक्ष जाइ ते केवलि कहइं ॥५५।। भेद सातमइ समकित पंच पहिलु उपशम विवरं तं च । कहीइं समकित पामिउं नही आयुकर्म स्थिति निश्चइ कही ॥५६॥ अवर कोटाकोटि सातइ कर्म आण्या माहि करी जीव धर्म । मन चोखइ लाधुं समकित अंतर्महूर्त मिथ्या गिळं चित्त ॥५७॥ ते लव पुदगल वेइ नहि पुनरपि समकित थिरता नही । मिथ्या भाग मइलु ढग नूउ । मन चोखइ समकित ढग हूउ ॥५८॥ इम बिहू ढगला जूआ धरइ मिश्र भाग ते त्रीजु करइ । जिम कोदिरा भेदि त्रिहु हुआ मीण्या मिश्र सूधा ते जूआ ॥५९।। समकित मिथ्या विचि जे समइ अनंतानुबंध आविउ तिहां उदय । कलुष समइ सास्वादन तेह खीर खांड घृत जिम जमीआं जेह ॥६०॥ वमतां स्वाद वेइ जेतलउ सास्वादन समकित एतलउ ।। पंच समकितना सुणिज्यो मर्म । अकाम निर्झरा हणीआ कर्म ॥६१॥ तव लाळू उपशम समकित वमतां आस्वादन दृढ चित्त । क्षायोपशमिक चोखं मन्न वर्तमान पामइ त्रिण्णि धन्न ॥६२॥ क्षपक श्रेणि चडतां त्रिणि भाग । छेहलु वेदक समकित राग । मिश्रकर्म क्षप्यां सवि सात तउ क्षायक समकितनी वात ॥६३।। जिणि पामीजइ मोक्ष दूआर पुनरपि गमण नही अवतार । आहारक संसारी जीव अणाहार मोक्ष जाइ सदैव ॥६४॥ तुं मइ घातकि दर्शन च्यारि । चक्षु अचक्षु अवधि त्रिण्णि वारि । केवलदर्शन होइ मोख । पंच न्यानमाहि कुणि संतोष ॥६५॥ मति श्रुति अवधि न्यान ए तिण्णि मनपर्यव केवल शिव सरण्णि ए चिहु मुगति न पामइ जीव पंचम केवलन्यान सदैव ॥६६॥ इणि दश थानकि पामइ पार शेषि अनंत भमइ संसार । गर्भज मानव इंद्रय पंच मोक्ष तेहं छइ अपरां वंच ॥६७।।
SR No.229670
Book TitleNavtattva Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size144 KB
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