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अनुसन्धान-५७
तोल प्रमाण कहीइ प्रदेश इम गोलीना भेद विशेश । तिम प्राणी पुदगल संग्रही बांधइ कर्म जगमाहिं रही ॥४१॥ न्यान दर्शन चारित्र आचरइ । प्रगट करइ सुख दुख छावरइ । प्रकृतिबंध कहीइ प्राणनु । बीजु थिति भेदे आयुनु ॥४२॥ अंतर्महूर्त एक अड बार जघन्य कर्म थिति ए अवधारि । कोटाकोटि अपर बांधणी वीस त्रीस सत्तरि कर्म तणी ॥४३॥ ए उतकृष्ट जाणु परमायु इणिपरि थिति ए बांधी जाय । घj घणेरुं बंधन थाय ए अनुभाग रस कहिवराय ॥४४॥ पुण तिणि बंधनि करइ प्रदेश एक पुदगल बहुला लवलेश । बंध तत्त्वना च्यारि प्रकार किंचन मात्र कहिउ विचार ॥४५॥ नवमुं तत्त्व विचारुं मोक्ष ते(ति)हां अविहड अनंता सौक्ष । कर्मतणां बंधन जो मठी जिम अग्यारांगई(?) सोगठी ॥४६।। सविहुं जीव सरीखां सुक्ख अंतरभेद न दीसइ मुक्ख । तिहाइ भेद कहिं केवली नव प्रकारि होइ ते वली ॥४७॥ सकल लोक मस्तकि ते सही नास्तिकमत ते मानि नही । तेह संदेह भांजेवा अरथि एक जि नाम हुइ समरथि ॥४८॥ जीव देव घट पट जिम धर्म जगि नियति छई एह जि मर्म । जोड नाम हुइ अथ नही जिम छइ राजपुत्र ते सही ॥४९॥ वृषभसींग नइ चांपा फूल महिषशृंग पुन अर्कह तूल । इत्यादिक छई नही ते किस्युं बंध्या सुत खरशृंग न इस्युं ॥५०॥ तुरंगमसींग कुसुमआकाश नाम अछि पुण वस्त विनाश । जिहां संदेह मोक्ष एक नाम छइ इम निश्चई उत्तम ठाम ॥५१॥ बीजु भेद मोक्ष कुंण जाइ नारक तिरिया गत्ति न जाइ । एकेंद्री विगलेंद्रीय नही पंचेंद्री कोइ जाइ सही ॥५२।। त्रीजु भेद षट जीवनिकाय त्रस माहिथी मानव जाय । अभव्य जीव जाइ नही कदा भव्य हुइ ते जाइ सदा ॥५३।। च्यारि भेद ए पंचम कहिं । असनीआ ते मो[क्ष] नवि लहिं ।