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________________ डिसेम्बर २०११ पढq गुणवू पुच्छिवं चिंतनधर्म उपाय । चउथउ तप ए जाणिवउ जे पंचविधिं सज्झाय ॥२८॥ आर्त्तरौद्र टालइ सदा शुक्ल धर्म मनि ध्यान । सयर सगति काउसग करइ नउ हुइ हीयडइ सांन ॥२९॥ ॥ चउपई ॥ इम तप करिवु बारे भेदि । इणिपरि कर्म तणु हुइ च्छेदि । तप घरष्टी उपशम मांकडी । श्रम हाथउ कर्मसुं कुदली ॥३०॥ बंध तत्त्व सांभलयो सहू । सूक्ष्म विचार अछइ ते बहू । जेहथी काल अनंतु रुलइ । जीव कर्म बंधन इम मलइ ॥३१॥ दूध अनइ पाणी जिम एक माटी धातु अच्छि एकमेक । लोह धभिउ जिम अगनि प्रदेश जीवकर्म तिम मिश्र निवेश ॥३२॥ दैव कहीइ ते प्राची कर्म भेट्यउ जीव सहइ दुख शर्म । वैरि भावि रहिं एकठां तेह ऊपरि सुणिज्यो इम उठां ॥३३।। सर्प तणइ मस्तकि मणि दाढ । कोमल जीभ दशन छइं गाढ । घर भीतरि मूंसा मंजारि । माखी चिमन विष्टा निवारी ॥३४॥ दीवा तेज मषी सामली जीव कर्म तिम रहियां बे मली । जाणइ जीव कर्म भोलवं वांछइ कर्म जीव रोलवू ॥३५॥ कर्मतणां बंधन छइं च्यारि प्रकृति-थिति-रस-प्रदेश विचारि । जिम को बांधइ वैद्य गोटिकां । वाटइ ओसड नही मोटिकां ॥३६।। तेहमाहि पुण ए चिहु बंध पहिलं प्रकृति कहुं ए खंध । केतली गोली टालइ वाय एक जाणीसिं पित्त जि जाय ॥३७॥ बहुमूली सबलाई करइ केतली गोली श्लेष्म उपहरइ । ज्वर फेडइ गोली केतली संनिपांत जाइ ते भली ॥३८॥ इम गुण द्यइ ते प्रकृति सुभोव । बीजी स्थिति बांधइ इणि भावि । दिवस मास वच्छर परमायु ते ऊपहिरी वणसी जाय ॥३९॥ थिति ए कहीइ रसनी वात खारी खाटी मधुरी जाति । ताजे ओसडि सरसी होइ जूने विरसी लागइ सोइ ॥४०॥
SR No.229670
Book TitleNavtattva Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size144 KB
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