________________
अनुसन्धान-५७
भाषासुमति राखइ पर आप । सत्यवचन बोलइ निपाप ॥ दोष बयालीस छई जे तणा । ल्यइ आहार रहित एषणा ॥८९।। कांई वस्त मुकइ ल्यइ जिहां । आदानसुमति पुंजीजइ तिहां । मल मातरं सलेखम थुक । परठतां पुंजवू अचूंक ॥९०॥ आर्त रौद्र न करइ मनि ध्यांन । धर्म शुक्ल धरतां हुइ ग्यांन । मौन करइ जव काढइ वाणि । धर्मकथा मुखि वस्त्र वराणि ॥९१॥ बार आगारे काउसग धरइ । कायगुपति संचल नवि करइ । आठइ प्रवचनमाता कही । हिव बावीस परीसह सही ॥९२।। क्षुधा खमइ अशुद्ध नवि ग्रहइ । सचित न पीइ तृषा सहइ । आगि न तापइ सीतल खमइ । स्नान नवायु ऊन्हाला समइ ॥९३।। डांस मसा सहि काउसगि रहियां । वस्त्र न वांछइ जूना लहियां । अशुभ ठाम च्छइ नही आरत्ति । सरूप देखी न धरइ चिति ॥९४|| गाम क्षेत्र कुल ठाम न मोह । करइ नवकल्पि विहारिं सोह । का[उ]सगध्यांन जिहां नैषेधकी । भय न करइ सादिक थकी ॥९५।। पाटि पीढ सिय्या लंपणी । दुख नाणइ संकीरण भणी । अजाण लोक बोलि वैभाख । आक्रोस परीषह खमीइ लाख ॥९६।। लोहि लाकडि कोइ मारइ दुष्ट । छांडइ प्राणपणिं खेद न कष्ट । मोटां कुल मुझ किम याचना । दुःख न आणइ मनि वासना ॥९७|| न लहूं भिक्षा हूं सूझती । अपर लहिं दुख नाणइ यती । व्याधि परीसह सबलु रोग । सहइ पुण न करइ सावद्ययोग ॥९८॥ धर्म पणइं मल टालइ नही । गुण सतकारि न गरबी लही । न्यांन भणिउ पणि न धरइ मांन । विद्या नावइ खेद न अन्यान ॥९९।। देवगुरुनइ धर्म आचरइ । समकित लही साचु नवि करइ । ए बावीस परीसा खमइ । साधु सदा आत्माइ दमइ ॥२००॥ हिव दश भेद यतीनु धर्म । क्षमानिधि क्रोध नही ए मर्म । आर्जव माया नही सुकुमाल । मार्दव वाणी अमीय रसाल ॥२०१॥ मुगति मुंक्या संसारी सुक्ख । बार भेदि तप सहवा दुक्ख । संयम सर्वजीव साचवइ । सत्य वचन सिद्धांत जि लवइ ॥२०२॥