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________________ डिसेम्बर २०११ ८३ शौच अदत्त कांई नवि ग्रहइ । धर्मोपगरण चऊद संग्रहइ । द्रव्यादिक ममता नवि करइ । ब्रह्मचर्य नव भेदे धरइ ॥ २०३ ॥ ए दश भेद यतीना कहिया । भावन बार भेद संग्रहिया । घर घरणी धन वय अस्थिरं । माया म धरु इणि विस्तरि ॥४॥ आव्यइ मरण शरण नही कोई । नवि आपणु पिआरु लोइ । लाख चउरासी जीवा योनि । भमता भव नीगमीआ सुनिए ॥५॥ एकलु आविउ एकलु जाइ । को कहिनु साथी नवि थाइ । असुचिपणुं तुह देह मझारि । मूत्र परीखा श्लेष्म मलधारि ॥६॥ आश्रवद्वार मिथ्यातिं भरिउ । जीव कसाय अवरति आवरिउ । संवरभाव विरति शुभ ध्यांन । धरतां पामइ पंचम न्यांन ॥७॥ नवमी कर्मनीझर भावना । नारक दुक्ख सहियां मन विना । धर्मभावना इणिपरि धरइ । सार मनोरथ धर्मिं सइ ॥८॥ लोकभावना चऊदइ राज | चिंतइ पिडि सरइ सवि काज । बोधिभावना दुर्लभ लहइ । शिवपुरगामी ते सह ||९|| ए बारइ भावन भावीइ । चडती पदवी तु फावीइ । हिव पांचइ चारित्र विचार । पालइ ते पामइ भवपार ॥ १० ॥ पहिलं सामाइकु ऊचरइ । सर्व सावद्य मनसां परिहरइ । बीजु चरित च्छेदोपस्थान । पढम चरम वारइ जिन मांन ॥ ११ ॥ छजीवकाय जउ जाणइ खरइ । पंचमहाव्रत तउ ऊचरइ | त्रीजुं छइ परिहार विशुद्ध । अरण्यमाहि रइ जूउ बुद्ध ||१२|| नव जण सरसु जई तप करइ । अढार महीना जालइ खरइ । जउ उपसर्ग परीसह खमइ । तु गच्छमाहि आवीनइ जमइ ॥ १३॥ चउथुं चरित सूखिमसंपराय । दशमइ गुणठाणइ चडि जाय । क्रोध मांन माया परिहरइ । लोभ उदय अति सूखिम धरइ ॥ १४॥ मन परणाम चोथानी वातु । चारित पंचम जह ख्यात । कषाय सर्वनां काढियां मूल । उदय न आवइ सूखिम थूल ॥ १५ ॥ त्रिणि चारित्र हिवइ छतिं गयां । पहिलां बि चारित ते रहियां । इणि परि संवर सत्तावन्न । भेद आणइ जे हुइ कृतपुन्न ||१६||
SR No.229670
Book TitleNavtattva Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size144 KB
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