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________________ १६२ अनुसन्धान ४९ करना७४, कंस को देवकी के सब पुत्र मारने की सलाह देना५, सावर्णि मनुप्राचीनबी-प्रचेता तथा धर्मराज आदि को ज्ञानोपदेश देना ६ आदि । श्रामणिक परम्परा का और विशेषतः उत्तराध्ययन में निहित यज्ञविषयक विचार की याद दिलानेवाला एक विशेष उल्लेख भागवतपुराण में पाया जाता है। गृहस्थों के लिए मोक्षधर्म का वर्णन करते हुए नारद कहता है कि, "किसी भी प्राणी को मन, वाणी और शरीर से किसी प्रकार का कष्ट न दिया जाय । इसीसे कोई कोई यज्ञ तत्व को जानेवाले ज्ञानी, ज्ञान के द्वारा प्रज्वलित आत्मसंयमरूप अग्नि में इन कर्ममय यज्ञों का हवन कर देते हैं और बाह्य कर्मकलापों से उपरत हो जाते हैं ।" उत्तराध्ययन के यज्ञविषयक विचारों का भागवतपुराण के साथ शब्दसाम्य होना बहुत ही लक्षणीय बात है । ऋग्वेद, अथर्ववेद७९ ऐतरेय ब्राह्मण तथा महाभारत में नारद का अहिंसक यज्ञ के प्रति जो झुकाव स्पष्टतः दिखायी देता है वही प्रवृत्ति भागवतपुराण के उपर्युक्त उल्लेख में निहित है। लेकिन ऋग्वेद से लेकर महाभारत तक नारद का जो सुसंगत, हिंसकयज्ञविरोधी तथा आदरणीय चित्रण दिखायी देता है वह भागवतपुराण में कलहप्रियता, स्त्रियों के सम्पर्क में रहना आदि निन्दनीय अंशों से युक्त होकर संभ्रमावस्था में दिखायी देता है। किन्तु नारद के प्रति आदरणीयता भी बारबार दिखायी गयी है। अर्धमागधी आगमग्रन्थ ऋषिभाषित में नारद का जो आदरणीय स्थान है उसकी पुष्टि हम महाभारत तक के ग्रन्थों में निहित नारदविषयक आदरणीयता से कर सकते हैं । अर्धमागधी आगमग्रन्थ ईसवी की पाँचवी शताब्दी में लिखित स्वरूप में आए । नन्दी-२ और अनुयोगद्वारसूत्र.३ इन ग्रन्थों में 'महाभारत' का उल्लेख 'भारत' (भारह) शब्द से किया है मतलब महावीर के काल में महाभारत के द्वितीय संस्करण की प्रक्रिया जारी रही होंगी । अगर ऋषिभाषित को महावीरवाणी मानी जाय तो समकालीन समाज में प्रचलित नारदविषयक आदरणीय अवधारणा ही उसमें प्रतिबिम्बित दिखायी देती है। यद्यपि नायाधम्मकहा ग्रन्थ अर्धमागधी अङ्गआगमग्रन्थों में गिनाया जाता है तथापि प्राकृत के अभ्यासकों ने भाषा और विषय की दृष्टि से उसे पाँचवी-छठी शताब्दी के बाद का ही ग्रन्थ माना है। प्रायः चौथी-पाँचवी शती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229669
Book TitleNarad ke Vyaktitva ke Bare me Jain Grantho me Pradarshit Sambhramavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaumudi Baldota
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size557 KB
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