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________________ १२० कुंमरी सूधी श्राव्यका तस नवी बोलावइ । चरचा कीधी धर्मनी तव ते दूख पावइ ॥८६॥(८७)|| हरीहर भ्रह्मा थापती सीतापती राम । अनुसन्धान-५० जग सघलइ वापी रह्या परमेश्वर नाम ॥ ८७ (८८)|| मली कहइ सुणि तापसी जो सघलइ सांई । अस्युच वस्तम्हां ते थयो एम न मलइ कांई ॥८८|(८९)| जो सहुनइं सांईइं घडयां शा न्हाना मोटा । एक सुखीआ सरया कसई एकनई नही रोटा ||८९ । (९) ॥ ईसि नारि न ओलखी वर आपी भागो । सुतमुं सीस वडारीउं शिरि हाथ्य न लागो ||९० | (९१)॥ बली द्वारिकां कहाननी गोपी लुटाई । बालिक परि बाली तणां चीवर लेई जाई ॥९१॥ (९२) ॥ ए परमेस्वर ताहरो मुझ जीनवर देवो । अनंतज्ञान नारी नही सूर करतां सेवो ॥ ९२ ॥ (९३)॥ करता थापइ करमनिं तु न लहइ मरम । मानभीष्ट थई तापसी काई न रही शरम ॥ ९३ ॥ (९४) ॥ द्वेष धरी त्याहा चीतवइ जोगिण धुतारी । हुं परणावुं एहनिं ज्याहां होइ बहु नारी ॥ ९४ | (९५)॥ चोखा क्यंपिलपुर्य गई यतशत्रु राजा । सहइस नारि तेहनिं घरी ब्यहुत दीवाजा ॥ ९५|(९६)॥ चोखा नृपनिं जई मली नृप दइ बहुमान । अंतेवर देखाडीओं पुछई देई दान || ९६ । (९७)॥ अंतेवर आवुं वली तिं दी क्याहि । मुखि मरकलडो मुकती हसती मन मांहि ॥९७ (९८)| नालीद्वीपना मानवी भखि श्रीफल त्याहि । एह व्यनां मनि चीतवइ नही खावुं क्याहिं ॥ ९८| (९९) ॥ त्यम तुं राजा चीतवइ अंतेवर सारूं । असी नारि क्याहिं नही ध्यन जीवत म्हारूं ॥ ९९| (१००) |
SR No.229668
Book TitleMallinath no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size142 KB
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