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डिसेम्बर २०१०
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आधुनिक काल में उपर्युक्त सामग्री के आधार पर सबसे पहले जर्मन विद्वान् डॉ० बुल्हर ने ईस्वी सन् १८८९ में वेना में रहते हुए हेमचन्द्रसूरि का जीवन चरित्र लिखा है | यह पुस्तक जर्मन भाषा में प्रकाशित हुई थी । इसी का अंग्रेजी अनुवाद प्रो. डॉ० मणिलाल पटेलने ई.सन. १९३६ में किया था जिसे सिंघी जैन ज्ञानपीठ विश्व भारती शान्तिनिकेतन से प्रकाशित किया गया था । इसी के आधार पर आचार्यश्री का जीवन वृत्तान्त लिखा जा रहा है। जीवनचरित्र
हेमचन्द्र का जन्म अहमदाबाद से ६० मील दूर धंधुका में विक्रम संवत् ११४५ कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था । धंधुका में इनके माता-पिता मोढ़ वंशीय वैश्य रहते थे । पिता का नाम चाचिग और माता का नाम पाहिणीदेवी था । पिता का नाम, चाच्च, चाच, चाचिग तीनों मिलते है । मोढ़ वंशीय वैश्यों की कुलदेवी चामुण्डा और कुलयक्ष गोनस था । माता पाहिणी जैन थी और पिता चाचिग सनातनधर्मी थे । नामकरण के समय नाम रखा गया चांगदेव । इनके मामा नेमिनाग जैन धर्मी थे । आगामी प्रसङ्गों में उदयनमन्त्री द्वारा रूपये दिये जाने पर उन्होंने शिवनिर्माल्य शब्द का प्रयोग किया है अतः इसके पिता शैव थे, ऐसा लगता है । पिता शैव और माता जैन इसमें कोई विरोध नहीं है | स्वयं गुजरात के महाराजाधिराज सिद्धराज जयसिंह की माता जैन थी और उनके पिता शैव धर्मावलम्बी थे ।
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प्रबन्ध कोष के अनुसार चांगदेव जब गर्भ में तब माता पाहिणी ने स्वप्न में आम्र का सुन्दर वृक्ष देखा था । इस पर आचार्य देवचन्द्र ने स्वप्नलक्षण फल का कथन करते हुए कहा था कि 'वह दीक्षा लेने योग्य होगा ।' कुमारपाल प्रतिबोध के अनुसार उसकी माता ने चिन्तामणि रत्न का स्वप्न देखा था । उसका फल कथनकरते हुए आचार्य देवचन्द्र ने कहा था कि तुम्हारे एक चिन्तामणि तुल्य पुत्र होगा, परन्तु गुरु को सौंप देने के कारण सूरिराज होगा, गृहस्थ नहीं ।
दीक्षा :
कुमारपाल प्रतिबोध के अनुसार चांगदेव अपनी माता पाहिणी के साथ पूर्णतल्लगच्छीय देवचन्द्रसूरि के उपदेश सुनने के लिए पौषधशाला जाते