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________________ डिसेम्बर २०१० जो निम्न हैं :- चन्द्रप्रभा व्याकरण (मेघविजयोपाध्याय), हेमप्रकाश व्याकरण (हेमलघु प्रक्रिया, स्वोपज्ञ विनयविजयोपाध्याय), हेमप्रक्रिया ( वीरसिंह / महेन्द्र), हेमबृहद् प्रक्रिया (मयाशंकर शास्त्री), हेमशब्द संचय (अमरचन्द्र), हेमशब्दचन्द्रिका (मेघविजय) । प्राकृत व्याकरण अमरचन्द्रसूरि, हरिभद्रसूरि लिङ्गानुशासन (दुर्गपदप्रबोधवृत्ति) श्रीवल्लभोपाध्याय, शेषसङ्ग्रह नाममाला (श्रीवल्लभोपाध्याय), १५३ निघण्टु नाममाला ( श्रीवल्लभोपाध्याय), अभिधान चिन्तामणि नाममाला टीका - कुशलसागरगणि, देवसागरगणि (व्युत्पत्ति रत्नाकर), भानुचन्द्रगणि, श्रीवल्लभोपाध्याय (सारोद्धार), साधुरत्न (अवचूरि) द्वयाश्रय काव्य टीका (संस्कृत) अभयतिलकोपाध्याय द्वयाश्रय काव्य टीका (प्राकृत) पूर्णकलश वीतराग स्तोत्र टीका - प्रभानन्दसूरि ( दुर्गपद प्रकाशिका), सोमोदयगणि, नयसागरगणि (अवचूरि), राजसागरगणि, माणिक्यगणि, मेघगणि - योगशास्त्र टीका – अमरप्रभसूरि (वृत्ति), इन्द्रसौभाग्यगणि (वार्त्तिक), मेरुसुन्दरगणि (बालावबोध), सोमसुन्दरसूरि (बालावबोध) । उपसंहार साढ़े तीन करोड़ पंक्तियों के विराट् साहित्य का एक व्यक्ति के द्वारा सृजन करना स्वयं असाधारण बात है । आचार्य हेमचन्द्र अपने भव्य व्यक्तित्व के रूप में एक जीवन विश्व विद्यालय अथवा मूर्तिमान ज्ञानकोष से उन्होंने ज्ञानकोष के समकक्ष विशाल ग्रन्थ सङ्ग्रह का भी भावी पीढ़ी के लिए सृजन किया था । तेजस्वी और आकर्षक व्यक्तित्व को धारण करने वाले वे महापुरुष थे । वे तपोनिष्ठ थे, शास्त्रवेत्ता थे तथा कवि थे । वे महर्षि, महात्मा, पूर्णसंयमी, उत्कृष्ट जितेन्द्रिय एवं अखण्ड ब्रह्मचारी थे । वे निर्भय, राजनीतिज्ञ, गुरुभक्त, मातृभक्त, भक्तवत्सल तथावादी मानमर्दक थे । वे सर्व धर्म समभावी, सत्य के उपासक जैन धर्म के प्रचारक तथा देश के उद्धारक थे । कहा जाता I I
SR No.229667
Book TitleKalikal Sarvagna Hemchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size137 KB
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