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डिसेम्बर २०१०
जीवन में तन्मयीभूत सर्वदर्शन - समदर्शिता को ही आभारी है । "
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' आचार्य हेमचन्द्र के कारण ही गुजरात श्वेताम्बरियों का गढ़ बना तथा वहाँ १२-१३वीं शताब्दी में जैन साहित्य की विपुल समृद्धि हुई । वि.सं.. १२१६ में कुमारपाल पूर्णतया जैन बना । "
विन्टरनित्ज - हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर भाग २ पृ. ४८२-८३, ५११
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मुनि पुण्यविजय : श्रीहेमचन्द्राचार्य, प्रस्तावना, पृ. १२
श्री कन्हैयालाल मा. मुंशी ने इनकी प्रतिभा को सम्मान देते हुए उचित ही कहा है – “इस बाल साधु ने सिद्धराज जयसिंह के ज्वलन्त युग के आन्दोलनों को झेला । कुमारपाल के मित्र और प्रेरक पद प्राप्त किया । गुजरात के साहित्य का नवयुग स्थापित किया । इन्होंने जो साहित्यिक प्रणालिकाएँ स्थापित कीं, जो ऐतिहासिक दृष्टि व्यवस्थित / विकसित की, एकता की बुद्धि निर्मित कर जो गुजराती अस्मिता की नींव डाली, उस पर आज अगाध आशा के अधिकारी ऐसा एक और अवियोज्य गुजरात का मन्दिर बना है ।" (श्री के.एम. मुन्शी प्रसिद्ध इतिहासकार, भारतीय विद्या भवन के संस्थापक, भारत सरकार के उद्योगमन्त्री)
धूमकेतु : श्रीहेमचन्द्राचार्य, पृ. १५८ का अनुवाद ।
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" संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का और श्री हर्ष के दरबार में बाणभट्ट का है, प्रायः वही स्थान ईसा की बारहवीं शताब्दी में चौलुक्य वंशोद्भव सुप्रसिद्ध गुर्जर नरेन्द्र शिरोमणि सिद्धराज जयसिंह के दरबार में हेमचन्द्र का है ।"
पं. शिवदत्त : नागरी प्रचारिणी पत्रिका का भाग ६, सं. ४ “किन्तु, जैसे शिवाजी रामदास के बिना, विक्रम कवि कुलगुरु कालिदास के बिना और भोज धनपाल के बिना शून्य लगते हैं वैसे ही सिद्धराज और कुमारपाल साधु हेमचन्द्राचार्य के बिना शून्य लगते हैं । जिस समय में मालवा के पण्डितो ने भीम के दरबार की सरस्वतीपरीक्षा की, उसी समय से ही यह अनिवार्य था कि गुजरात की पराक्रम लक्ष्मी, संस्कार लक्ष्मी