________________
ऑगस्ट २०११
१६९
पश्यत्तानो निषेध छे.
श्रुतज्ञानथी आपणे जे पदार्थने जेवा स्वरूपे जाणीओ तेवा स्वरूपे तेने काल्पनिक रीते मननी सामे उपस्थित पण करी शकीओ. आ साक्षात्कार श्रुतज्ञानना बळे थाय छे, माटे ते वखते श्रुतज्ञानोपयोग पण प्रवर्तमान ज होय छे. वळी आ साक्षात्कार निश्चित वस्तु-विषयने अनुलक्षीने थाय छे, तेथी ते साकार होय छे. आ साक्षात्कार ज श्रुतज्ञानसाकारपश्यत्ता तरीके ओळखाय छे. 'श्रुतज्ञानी भगवन्त अनुत्तरविमानने यथार्थ स्वरूपे चीतरी शके छे. जो अनुत्तर विमानने तेओओ जोयुं ज ना होय तो तेओ तेने चीतरी कई रीते शके ? माटे मानवू ज जोइओ के तेओ श्रुतज्ञानना बळे अनुत्तरविमानने जोइ शके छे अने तेमनुं आ जोवू श्रुतज्ञानसाकारपश्यत्ताना बळे ज शक्य छे' अवो तर्क प्रस्तुत सन्दर्भ हारिभद्रीय टीकामां अपायो छे.
ओ ज रीते अवधिज्ञानी के केवलज्ञानी महात्मा ज्यारे ज्ञानना बळे ते ते पदार्थने जाणे छे त्यारे ते ते पदार्थनो साक्षात्कार पण प्रवर्ततो ज होय छे. आ साक्षात्कार ज ते ते ज्ञाननी साकार-पश्यत्ता कहेवाय छे. दर्शनो तो स्वयं निराकार-पश्यत्तारूप ज होय छे.
★ विभङ्गज्ञानीने अवधिदर्शन केम न होय ?
आम तो विभङ्गज्ञान ओ अवधिज्ञाननो ज प्रकार छे अने ते साकार होवाथी तेनाथी पूर्वे अवधिदर्शनात्मक निराकारोपयोग मानवो ज पडे. छतां वृद्धसम्प्रदाय विभङ्गज्ञानीना निराकारोपयोगने पण, चक्षुर्दर्शन गणवाना पक्षमा ज छे.१ आनुं कारण ओ होइ शके के चक्षुर्दर्शन अने अवधिदर्शनमा ओक पायानो तफावत छे. चक्षुर्दर्शनमां स्वयं उपस्थित वस्तुनो ज साक्षात्कार होय छे, ज्यारे अवधिदर्शनमां वस्तु ज्ञानशक्तिना बळे उपस्थित थती होय छे. हवे मिथ्यात्वी जीवनी ज्ञानशक्ति तो मलिन ज होवाथी अने तेथी तेना बळे उपस्थित वस्तु पण अयथार्थ ज होवानी. तेथी आवी अयथार्थ वस्तुनो साक्षात्कार अवधिदर्शन न गणाय ओवी समजण आवा वृद्धसम्प्रदाय पाछळ होइ शके. प्रश्न ओ छे
१. अवधिदर्शनं तु सम्यग्दृष्टरेव, न मिथ्यादृष्टेः, चक्षुर्दर्शनमेव किल तस्येति पारमर्षी श्रुतिः
- तत्त्वार्थ-गन्धहस्ति० २.९