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ऑगस्ट २०११
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आवो नियम अने 'घ्राणादि ४ इन्द्रियोथी थतो सामान्य बोध ते पण अचक्षुर्दर्शन' आवी प्ररूपणा निराकार दर्शनथी तुल्य व्यंजनावग्रहने औपचारिक दर्शन गणीने समजवानी छे.
___ हवे आपणे प्रस्तुत ज्ञान-दर्शननी चर्चा साथे ज संकळायेला केटलाक अन्य प्रश्नो पर थोडो विचार करीओ :
★ अचक्षुर्दर्शन- विषयक्षेत्र शुं ? ___ अनुयोगद्वारमा आ माटे पाठ छे : "अचक्खुदंसणं अचक्खुदंसणस्स आयभावे ।" आमां अचक्षुर्दर्शनना विषयभूत पदार्थो तरीके आत्मभावोने जणाव्या छे. स्पष्ट छे के अचक्षुर्दर्शनथी अत्रे 'मानसदर्शन'ने ज पकडवानुं छे के जेना द्वारा आत्मानो, तेनी लागणीओनो, तेना विचारोनो अने तेवा ज बीजा आत्मिकभावोनो साक्षात्कार करी शकाय छे.
___टीकाकार अत्रे अचक्षुर्दर्शनथी घ्राण, श्रोत्र, रसना, त्वचा अने मनथी थता सामान्यबोधने पकडे छे अने तेथी 'आयभावे'नो अर्थ करे छे शब्दात्मक, गन्धात्मक व. पुद्गलो के जे उपरोक्त सामान्यबोधना विषय छे. 'घ्राणादि ४ इन्द्रियोमां पुद्गलो संयुक्त थया पछी ज बोध थइ शके छे अने संयुक्त पुद्गलो 'आत्मभूत' गणाय अने तेथी आवा आत्मभूत पुद्गलो - आत्मभावो अचक्षुर्दर्शननो विषय छे' अर्बु तेओनुं मन्तव्य जणाय छे. आमां घणी क्लिष्ट कल्पना करवी
पडे छे.
तत्त्वार्थसूत्रना गन्धहस्तिमहाभाष्यमां (२.९) इन्द्रिय-निरपेक्ष बोध के जेने अत्यारे आपणे Sixth Sense तरीके ओळखीओ छीओ तेने पण अचक्षुर्दर्शन
अवधिज्ञानात् पूर्वं, रूपिपदार्थावभासि यज्ज्योतिः । प्रविनिर्याति स्वस्मा-न्नामाऽवधिदर्शनं तत् स्यात् ॥ केवलदर्शनबोधौ, समस्तवस्तुप्रकाशिनौ युगपत् । दिनकृत्प्रकाशतापव-दावरणाभावतो नित्यम् ॥" आराधनासारना आ श्लोको अत्रे दर्शननी जे व्यवस्था वर्णवी तेनी साथे पूर्णतः संवादी छे.