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अनुसन्धान ५० (२)
कालक्रम का यह निर्धारण अनुमानित ही है। इसको एक-दो शती आगे-पीछे किया जा सकता है ।
मागधी एवं अर्धमागधी क्यों प्राचीन हैं ? क्योंकि भगवान महावीर और भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश इसी भाषा में दिये थे । इस सम्बन्ध में 'अर्धमागधी आगम' साहित्य से कुछ प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे हैं । यथा :१. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खई । - समवायांग,
समवाय ३४, सूत्र २२ २. तए णं समणे भगवं महावीरे कुणिअस्स भंभसारपुत्तस्स अद्धमागहाए
भासाए भासिता अरिहा धम्मं परिकहेई । - औपपातिक सूत्र १ ३. गोयमा ! देवा णं अद्धमागहीए भासाए भासंति स वि य णं अद्धमागहा
भासा भासिज्जमाणी विसज्जति । - भगवई, लाडनूं, शतक ५, उद्देशक
४, सूत्र ९३ ४. तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तमाहणस्स देवाणंदामाहणीए तीसे
य महति महलियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए ... सव्वभाषाणुगमिणिय सरस्सईए जोयणणीहारिणासरेणं अद्धमागहाए भासाए भासए
धम्म परिकहेई । - भगवई, लाडनूं, शतक ९, उद्देशक ३३, सूत्र १४९ ५. तए णं समणे भगवं महावीरे जामालिस्स खत्तियकुमारस्स ... अद्धमागहाए
भासाए भासइ धम्म परिकहेइ । - भगवई, लाडनूं, शतक ९, उद्देशक
३३, सूत्र १६३ ६. सव्वसत्तसमदरिसीहिं अद्धमागहाए भासाए सुत्तं उवदिटुं। - आचारांगचूर्णि,
जिनदासगणि, पृ. २५५
न केवल श्वेताम्बर मान्य अर्धमागधी आगमों में अपितु दिगम्बर परम्परा के शौरसनी ग्रन्थों में भी यह उल्लेख मिलते हैं कि भगवान महावीर के उपदेश की भाषा अर्धमागधी ही थी । आचार्य कुन्दकुन्द की कृति के रूप में मान्य बोधपाहुड की ३२ वीं गाथा में तीर्थंकरों के अतिशयों की चर्चा है। उसकी टीका में श्रीश्रुतसागरजी लिखते हैं कि - 'सर्वाऽर्धमागधीया भाषा भवति' अर्थात् उनकी सम्पूर्ण वाणी अर्धमागधी भाषा रूप होती है। पूज्य जिनेन्द्रवर्णी जिनेन्द्र