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फेब्रुआरी - 2006
उपाश्रयना द्वारमां बे हाथे बे तरफनी साख झालीने ऊभा हता. स्वामी गाडीमांथी हेठा ऊतर्या. एटलामां माणसनी मेदनी भराई गई. स्वामीए जैन मुनिने शान्तिथी पूछ्युं के "तमे अमारा सत्संगीओने केम संतापो छो ?" त्यारे तेणे करडाईथी कां के "तमे कोण छो ?" स्वामी कहे "अमे जगतना जीवना भगवान छोए" ! त्यारे कडं के "स्वामिनारायण कोण छे?" स्वामी कहे "ते तो अमारा पण भगवान छे." तेथी जैन मुनिए हांसी करी कडं के "तमारुं भगवानपणु बतावो एटले हुं जोउं तो खरो." स्वामीए ओटला उपर बेसी तेनी सामे दृष्टि सांधी, जैन मुनिनी आंखो स्थिर थई गई. बन्ने हाथ बारणांनी साखो पर चोटी रह्या. केटलाक जैन कहेवा लाग्या के "स्वामी जादुगर छे, तेमणे चोट नाखी छे." एम केटलोक वखत वीत्यो त्यारे लोकोए कह्यु के “जैन मुनिनी आ स्थिति छोडावो." तेथी स्वामीए तेमनी उपर दृष्टि करी एटले शुद्धिमां आव्या, तरत दोडीने स्वामीना पगमां पड्य ने कह्यं के तमे समर्थ छो, मारो अपराध क्षमा करो, हुं आजथी तमारा सम्प्रदायनी निन्दा नहीं करूं."
"जैनोए मुनिने पूछ्युं त्यारे कडं के "में समाधिमां तीर्थंकरोना दर्शन कल्. तेमणे आ महापुरुषोनी महत्ता मने कही छे. शुद्धिमां आवतां पहेलां मने यमपुरीनुं दर्शन थयु. यमदूतोथी घणी वेदना सहन करवी पडी छे." ए पछी त्यां सत्संग वध्यो अने भगादोशीनी प्रतिष्ठा पण वधी."
(ज्ञानोदय-त्रिमासिक, जुलाई '०४, पृष्ठ १३-१४
प्रका. स्वा.ना. गुरुकुल,सेक्टर-२३, गान्धीनगर) सम्प्रदायनो महिमा वधारवा माटे, जे ते समयना उत्तम अने प्रख्यात महानुभावोने सांकळी लईने, परचा-चमत्कारोना मरी-मसालाथी सभर, केवी मजानी कथाओ नीपजावी काढवामां आवे छे, ते उपरोक्त कथा वांचतां कल्पी शकाशे.
वास्तविकता ए छे के श्री विजयनेमिसूरिना जीवनमा आवो कोई प्रसंग बन्यो ज नथी. तेमना चरित्रना अभ्यासी तथा लेखक तरीकेना अधिकारथी पण हुं कही शकुं के बोटादना तेमना विहार तथा रोकाण दरम्यान आवो कोई ज विवाद के प्रसंग बन्यो नथी. तेमना अन्तेवासी श्रीविजयनन्दनसूरिजी,
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