Book Title: Samayno Takajo Sampradayik Udarta
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ समयनो तकाजो : साम्प्रदायिक उदारता भारतवर्ष ए हिन्दू संस्कृतिने वरेलो देश छे. आ देशमां अनेक धर्मो अने सम्प्रदायो पांगर्या छे. आ देशमां जैन, बौद्ध, वैदिक जेवा प्राचीनतम धर्मो पण प्रवर्ते छे; इस्लाम अने ईसाई सरीखा आगन्तुक धर्मो पण प्रवर्ते छे, अने स्वामीनारायण सम्प्रदाय जेवा अर्वाचीन धर्मसम्प्रदाय पण प्रवर्ते छे. इतिहासकाळमां तेमज मध्यकाळमां विविध धर्मो तथा सम्प्रदायो वच्चे तेमज पोतपोताना पेटा-सम्प्रदायो वच्चे वाग्युद्ध, शास्त्रार्थ, तेमज एक बीजाने नबळा पाडवा-देखाडवा माटेना चमत्कारिक तरीका - आ बधुं बहु चाल्या करतुं. परन्तु समयना बदलाता प्रवाह साथे ए बधा विवादो खोरंभे पडता गया के वीसराता गया छे. स्वातन्त्र्योत्तर समाजमां तो आवी वातो शरमजनक के संकुचित / विसंवादी मानसनी द्योतक ज गणावा मांडी छे. २००-२५० वर्षोथी प्रवर्तेला स्वामीनारायण सम्प्रदाये आजे तो देशभरमां, बल्के वैश्विक क्षेत्रे मोटुं गजुं काढ्युं छे. पोतानां श्रेष्ठ स्थापत्यना नमूना समां मन्दिरो द्वारा, शैक्षणिक गुरुकुलो द्वारा, तथा मानवसुधारणालक्षी सत्संगो द्वारा ते सम्प्रदाय खासो लोकप्रिय बन्यो छे, जे भारतीय संस्कृतिना सन्दर्भमां एक नोंधपात्र घटना गणी शकाय तेम छे. __आवा आ सम्प्रदायनो पण ज्यारे आरंभ थयो, त्यारे परचा अथवा स्थूल चमत्कारो द्वारा लोकसंग्रहनी प्रवृत्तिनुं प्राधान्य हतुं, एम तेनो इतिहास तपासतां स्हेजे समजाय तेम छे. स्वाभाविक रीते ज, तेनी सामे, प्रणालिकागत धर्म-सम्प्रदायोना लोकोए, प्रतिक्रिया दर्शावी हशे, दा.त. वि.सं. १९५० थी १९६० आसपासना समयगाळामां पंजाबी जैन मुनि दानविजयजी तथा मुनि नेमविजयजी (पाछळथी प्रसिद्ध आचार्य विजयनेमिसूरि) जेवा विद्वान तथा वैरागी जैन साधुओने स्वामीनारायण सम्प्रदायना पण्डितो तथा संतो साथे शिक्षापत्री वगेरे परत्वे शास्त्रार्थ करवाना एकाधिक प्रसंगो नोंधायेला मळे छे, जेमां विपक्षना विद्वानोनो पराभव ज थयेलो. साव स्वाभाविक छे के आवी परिस्थितिथी छेडायेला ते पराभव पामेला तत्त्वो, केटलीक कपोलकल्पित कथा उपजावी काढे, अने पोते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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