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अज्ञातकर्तृक प्राकृत-प्रश्नगर्भ-पंचपरमेष्ठि-स्तव
प्रो. नलिनी बलवीर
नमस्कार महामन्त्र का प्रभाव तथा प्रचार जैन समाज में सर्वत्र है । जैन लोग इसे कण्ठस्थ करते हैं और सभी धार्मिक अवसरों पर "नवकार" को प्राकृत भाषा में ही सुनते हैं । यदि श्रद्धा के साथ इसका प्रयोग किया जाए तो सभी प्रकार के विघ्न नष्ट हो जाते हैं । यह भय से सुरक्षित रखता है । इसको प्रायः जैन गायत्री कहते हैं । इसे पढ़ने से जैसे द्वार अपने आप खुलते हैं । फरवरी १९९६ की बात है । एक प्रातःकाल आबु पर्वत के जैन मन्दिर में प्रवेश के समय मेरा खाकी वर्दी के संरक्षक से सामना हुआ । प्रातःकाल मन्दिर केवल जैनियों के लिए पूजार्थ खुला होता है । संरक्षक से हिन्दी में मेरा संक्षिप्त वार्तालाप आरम्भ हुआ । मैंने बताया कि मैं दूर से आयी हूँ, मैं जैन धर्म के विषय पर शोध कर रही हूँ। मैं ने पं. माल्वणिया और प्रो. भायाणी के नाम का उल्लेख किया । उसने उत्तर दिया-यदि तुम जैन हो तो नवकारमन्त्र सुनाओ । तभी मैंने उसे मन्त्र कह सुनाया और उसने बड़े आडम्बरपूर्ण ढंग से हाथ उठाकर मुझे मन्दिर में प्रवेश करने दिया ।
__ नमस्कार महामन्त्र के ऊपर असंख्य ग्रन्थ लिखे गए हैं । स्तोत्र, रास, १. पूर्व प्रकाशित निबन्ध का यह लेख संक्षिप्त रूपान्तर है। देखिए Nalini Balbir "Le
Pañcanamaskāra en charades” Jaina-Itihāsa-Ratna. Festschrift für Gustav Roth zum 90. Geburtstag ed. by U. Hüsken, P. Kieffer-Pulz & A. Peters, Marburg, 2006 (Indica et Tibetica 47), pp. 9-31 स्व र्गीय डॉ. रोथ (१९१६२००८) ने पंचनमस्कारमन्त्र के विषय पर एक प्रेरणात्मक लेख लिखा है : “Notes on the Pamca-Namokkāra-Parama-Mamgala in Jaina Literature”, Adyar Library Bulletin. Mahāvira Jayanti Volume 38, pp. 1-18, reprinted in G. Roth, Indian Studies, Selected Papers, Delhi Shri Satguru Publica
tions, 1986, pp. 129-147 २. देखिए James Laidlaw, Riches and Renunciation. Religion, Economy,
and Society among the Jains. Oxford, Clarendon Press, 1995, p. 136 : “More than once when I was travelling ... in India I gained access to a closed Jain temple on the basis of little more than a clear recitation of the nokar mantra.''