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ऑगस्ट २०११
प्रकीर्ण स्तवनो
उपा. भुवनचन्द्र
प्रकीर्ण पत्रोमांथी मळेलां केटलांक स्तवन अहीं रजू कर्यां छे. गोडीपार्श्वनाथना स्तवनमां कर्तानुं नाम नथी, बाकी बधांमां कर्तानाम छे, अने आ बधा कविओ सुप्रसिद्ध छे. एमनी आ रचनाओ कदाच क्यांक प्रगट थई हो, तो पण आ पानाओमां तेमनुं मूळ भाषास्वरूप अने जूनो पाठ सचवाई रह्यां छे. ए दृष्टिए ए प्रकाशनयोग्य जणाय छे.
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आवी जूनी कृतिओमां जोवा मळती जूनी देशीओ - जूना ढाळ ध्यान खेंचे छे. गमे ते देशीमां कविओनी कलम केवी सरलताथी वही जाय छे, हृदयोर्मिओनुं चित्रण आ कविओ केटली सहजताथी करे छे - ऐनुं दर्शन पण आनन्ददायक छे.
रचनाओमां जूना शब्दरूपो जोवा मळे छे. जेम के, 'पधारो' नुं मूळ रूप ‘पाउ धारउ’, ‘परगजु'नुं असली रूप 'परगरज' वगेरे अहीं यथातथ रह्या छे. परवर्ती नकलोमां आवुं जोवा न मळे.
गोडी-पार्श्वनाथ - स्तवन स्वामी - सेवक भावने अवलंबीने रचायेल आ स्तवनमां प्रभुने विनन्ति, काकलूदी, उपालम्भ वगेरे बहु मधुर शब्दोमां व्यक्त थया छे. प्रभुस्नेह अने शरणागति आ स्तवनमां घूंटी घूंटीने गवाया छे. भीलडिया-पार्श्वनाथ - स्तवन आमां पार्श्वनाथ प्रभुना जीवनप्रसंगोनुं वर्णनमात्र छे. काव्यतत्त्व नहिवत् छे. भीलडी गाम के तीर्थ विषे पण कोई उल्लेख नथी. कवि आ तीर्थनी यात्राए गया होय अने त्यारे तेमणे आ स्तवन रच्युं होय एवी कल्पना थई शके छे.
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सम्भवनाथ - स्तवन
आध्यात्मिक दृष्टिए रचायेल आ स्तवनमां विविध जीवभेदोमां जीवोनी भवस्थिति - कायस्थितिनुं शास्त्रीय निरूपण खूबीपूर्वक - काव्यतत्त्वने आंच न आवे एवी रीते - सांकळी लीधुं छे. उपा. देवचन्द्रजी महाराजनां स्तवनोनी याद अपावे एवी रचना छे.
पञ्चतीर्थी - स्तवन
शत्रुंजय, दीओदर, गिरनार, जीराउला, सांचोर