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अनुसन्धान-५६
- आ पांच तीर्थोनी आमां भावभरी स्तवना छे. कवि लावण्यसमयने आ तीर्थो प्रत्ये विशेष आकर्षण हशे एवं जणाई आवे छे.
शीतलनाथ-स्तवन - अमरसरना मन्दिरना मूलनायक श्रीशीतलनाथ भगवानने उद्देशीने रचायुं छे. प्रभुने पाम्यानो आनन्द कविए विविध कल्पनो द्वारा मनोरम रीते चित्रित कर्यो छे.
आ रचनाओगें लिप्यन्तर पं.श्रीअंकितभाई (पालीताणा)ए करी आप्युं छे. हस्तलिखित पत्रो अमारा संग्रहना छे.
श्रीगोडीजी-पार्श्वजिन-स्तवन ॥६॥ प्रभु सहजइ. महिर करउ सदा जी, सेवकनी, सुणि अरदास हो, परगरज, जंगम जेह छइ जी, नवि मेहलइ, तेह निरास हो. अव० १ अवधारो३ अरज मया करी जी, पाउ धारउ, मुज मन गेह हो, स्यो चारो२ साहिबनें सेवक तणउ जी, जो देस्योः छटकी छेह हो. अव० २ एक निजरिं जेह सहुने जूइ जी, किम बदलें. दिल ते दयाल हो, दीन देखी. जे न करी दया जी, किम तेहने, कहीइ कृपाल हो. अव० ३ भलो भुंडोर हुँ सेवक तुम तणो जी, गुण हीणों, गुनही अत्यंत हो, पणि तुम्हनें न घटि उवेखवो जी, तुम्हे गिरुआ ने गुणवंत हो. अव० ४ साहिब जोर सेवकनें तजो जी, तो सेवकनुं तो स्युं जाइ हो, कोइ बीजानें, जई ओलगें जी, पणि प्रभुनी लाज लेपाय हो. अव० ५ प्रभु मोटार मीटि पालटि जी, तिहारि छोटार नु लहि तोल हो, समभावी, स्वभावि जेह छइ जी, किम थाइ, तेहy मोल हो. अव० ६ सेवक जे. कहिवाणउ आपणउ जी, निरवहीर लेवो प्रभु तास हो, पहिला ने पछि पणि तुम्ह विना जी, कुंण देस्ये, दिलासो पास हो.अव० ७ चीतारोः न सकि चीतरी जी, रूप ताहरोः जगवितरेक हो, जो न्यारोः सेवकथी तुं रही जी, पणि हुं तो न मेलुं टेक हो. अव० ८