________________
श्रीउत्तमविजयजी कृत
Kap
पिस्तालीस आगम-पूजा ॥
" वाचक जस" ना शिष्य गुणविजयजी, तेमना शिष्य सुमतिविजयजी, अने तेमना शिष्य उत्तमविजयजीए रचेली, आशरे ७६ कडीओमां पथराएली आ रचना छे. वि.सं.१८३४मां, सूरत बंदरना संघवी ताराचंदनां पत्नी रत्नबाईनी विनंतिथी, तथा ते चातुर्मासमां सूरतमां श्राविका - समुदाये करेल आगम- तपनी तेमज तेना ऊजमणांनी स्मृतिरूपे आ पूजा कविए बनावी होवानुं, पूजानी छेल्ली केटलीक कडीओ वांचतां समजाय छे.
४५ आगमो जैन संघनां पवित्र धर्मशास्त्रो छे. तेनुं पूजन अने बहुमान जैनो विशेष रूपे करे छे. ते अर्थे पं. बीरविजयजी तथा पं. रूपविजयजीए, नानी तथा मोटी पूजाओ बनावी छे, जे आजे पण जैनो द्वारा ठाठपूर्वक मंदिरोमां भणाववामां आवे छे. ते परंपरानी ज आ एक रचना छे.
Jain Education International
आमां सात ढाळो छे. अन्य पूजाओनी माफक अहीं जलादि अष्ट प्रकारी पूजा वगेरेनुं विधान नथी. मात्र गेय रचना तरीके ज आ पूजा स्वीकारवानी होय तेवुं लागे छे. अन्यथा तेनी आठ ढाळ होत, दरेकमां जल वगेरे एकेक द्रव्य वडे पूजानो निर्देश होत, ते अंगेनां काव्य-मंत्र पण होत. ते कशुं ज नथी, ते परथी लागे छे के आमां कर्ताए मात्र आगमोनां नामो तथा महिमा वर्णववानो ज उद्देश राख्यो छे.
सुखकर साहिब सेवीइं श्री संखेश्वर जगधणी
- विजयशीलचन्द्रसूरि
आ रचनानी ९ पत्रोनी एक प्रतिनी झेरोक्स परथी आ संपादन थयुं छे. ते प्रतिनो ले. सं. १८९० छे. पाठभेद माटे ला. द. विद्यामंदिरनी एक प्रतिनो आधार लीधो छे, तेनो क्रमांक झेरोक्समां नथी. केम के संभवतः ए पत्रो कोई चोपडाआकारनी पोथीमांथी झेरोक्स थयां जणाय छे.
४५ आगमनी पूजा ॥
दूहा ॥
गोडीमंडण पास
प्रणमुं अधिक उल्लास ||१||
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org