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अनुसन्धान-५९
गणनाभेदनुं निमित्त बन्यो, अम मानवाने बदले, वीरनिर्वाणनी बाबतमां १३ वर्षनो तफावत विक्रमसंवत्नी उत्पत्तिनी मान्यतामां फेरफारनुं कारण बन्यो ओम मानवं वधु युक्तिसङ्गत लागे छे. जो के आ बाबतमां सत्य शुं छे ते तो विद्वानो ज जणावी शके.
टिप्पणी १. वी.नि.सं.जै.का. - पृ. ६१ अने पृ. १३५, टि. ८८ माथुरी गणना
वालभी गणना वीरनि. सं.
वीरनि. सं. आर्य भद्रगुप्त (४१) ४९५-५३५ आर्य भद्रगुप्त (३९) ४९५-५३३ आर्य वज्र (३६) ५३६-५७१ आर्य श्रीगुप्त (१५) ५३४-५४८ आर्य आर्यरक्षित (१३)५७२-५८४ आर्य वज्र (३६) ५४९-५८४
आर्य आर्यरक्षित (१३) ५८५-५९७ ३. वी.नि.सं.जै.का. - पृ. ५५-६० ४. मौर्यवंशनां १६०ने बदले १०८ वर्ष गणवामां ५२ वर्षनो विपर्यास थयो छे
अवं मुनिश्री- कथन छे. ५. वी.नि.सं.जै.का. - टि. ४३, १०८ ६. वी.नि.सं.जै.का. - पृ. १४५, छेल्लो परिच्छेद ७. विसङ्गतिओ माटे जुओ - अनुसन्धान ५८, 'निह्वव रोहगुप्त...' लेख ८. वी.नि.सं.जै.का. - टि. १०२ ९. जो के मुनिश्रीओ वी.नि.सं.जै.का. - पृ. ६० पर विक्रमना राज्यारम्भथी १३मा
वर्षे विक्रम संवत्नी उत्पत्ति स्वीकारवा छतां एनो आरम्भ वीरनि. सं. ४७०मां देखाडनारी नीचेनी गाथा आपी छे - "विक्कमरज्जाणंतर, तेरसवासेसु वच्छरपवित्ती ।। सुन्नमुणिवेय (४७०) जुत्तो, विक्कमकालाउ जिणकालो ॥" परन्तु तेओओ आ गाथानो स्थाननिर्देश को नथी. तेथी लागे छे के आ गाथा तेओओ पोताना मन्तव्यनी पुष्टि माटे नीचेनी बे गाथाओनी पङ्क्तिओने जोडीने बनावी होवी जोईए :