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जून - २०१२
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४. बलमित्र-भानुमित्र ओ ज विक्रमादित्य, उज्जैनीनी गादी पर तेमनुं वीरनि. सं. ४५७मां आरोहण, तेमना अनुगामी राजा नभःसेनना राज्यकालमां ५मा वर्षे शकसेना साथेनुं युद्ध, आ युद्धमां मळेला विजयनी यादगीरीमां संवत्प्रवर्तन, आ संवत् साथे स्वर्गत राजा विक्रमना नामनुं जोडाण - आ तमाम वातो प्रमाणित थाय तो ज मुनिश्रीनो अभिप्राय ग्राह्य बनी शके. परन्तु वी.नि. सं.जै.का.मां ज दर्शावेला सन्दर्भो तपासतां तेओनी आ तमाम कल्पनाओने ऐतिहासिक रीते प्रमाणित करवी मुश्केल लागे छे.
५. विक्रम संवत्नी उत्पत्तिने सम्बन्धित जे उल्लेखो आजे मळे छे, तेमां क्यांय विक्रमराजाना वीरनि. सं. ४५७मां राज्यारोहणनी वात नथी. बल्के वीरनि. सं. ४७० पछी विक्रमनुं राज्यारोहण दर्शावता केटलाक छूटाछवाया उल्लेखोने बाद करतां वीरनि. सं. ४७०मां विक्रमना राज्यारोहणनी बाबतमां तमाम जैन ग्रन्थो अकमत छे. जैन श्रमणोनी आ मान्यता आधुनिक इतिहासकारोनी दृष्टिले अप्रामाणिक होय तो पण, माथुरी गणनाकारो वीरनि. सं. ४५७मां ज विक्रमर्नु राज्यारोहण स्वीकारता हता अम दृढपणे कई रीते कहेवाय ?
आ बधो ऊहापोह करतां 'वीरनि. सं. ४५७मां विक्रमादित्य राजा थयो के वीरनि. सं. ४७०मां ?' ओ मुद्दे बे गणनाओमां १३ वर्षनो तफावत पड्यो ओवो मुनिश्री कल्याणविजयजीनो अभिप्राय ग्राह्य जणातो नथी...
तेथी समग्रपणे विचारतां आम जणाय छे के श्रीश्रीगुप्ताचार्यनी वालभी गणनाकारोओ करेली गणतरी वाजबी होवा छतां, पूर्वे जणाव्युं तेम, अ गणनामां थयेली गरबड़े माथुरी गणना करतां वालभी गणनामां १३ वर्ष वधारी दीधां छे. आ १३ वर्षना तफावतना मुद्दे बन्ने पक्षो अटला मक्कम हशे के श्रीदेवर्द्धिगणिनी अध्यक्षतामां थयेली लेखनपरिषद् वखते बे पक्षो वच्चे समाधान शक्य न बनतां पज्जोसणाकप्पमां बे मतोनो उल्लेख जरूरी बन्यो हशे. लागे छे के त्यारे वि.सं. ५१० प्रवर्तमान होवाथी तेनी साथे वीरनिर्वाण संवत्नो मेळ बेसाडवा, वालभी गणनाकारोओ माथुरी गणनाथी जुदा पडीने, वीरनि. सं. ४७०-विक्रमना राज्यारोहणथी वि.सं.नी उत्पत्ति स्वीकारवाने बदले, तेना १३ वर्ष बाद विक्रमे प्रजाने अनृणी करीने संवत् प्रवर्ताव्यो अम स्वीकार्यु हशे. मतलब के विक्रमसंवत्ना मुद्दे उद्भवेलो मतभेद वीरनिर्वाणना मुद्दे