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अनुसन्धान-५९
लीधे १३ वर्षनो वधारो देखाय छे के जे सूचवे छे के श्रीश्रीगुप्ताचार्यनो ओ गणनामां पाछळथी प्रक्षेप नथी थयो.
आ बधुं विचारतां 'विक्रम संवत् क्यारथी शरू थयो ओ बाबते पडेलो मतभेद बे वाचना वच्चे वीरनिर्वाण संवत्मां १३ वर्षना तफावतनुं कारण बन्यो' ओवो कापडिया साहेबनो अभिप्राय स्वीकार्य न बनी शके.
___ मुनिश्री कल्याणविजयजीनो अभिप्राय के 'विक्कमज्जाणंतर...' ओ गाथानुं वालभी गणनाकारोओ करेलुं अन्यथा अर्थग्रहण बे वाचना वच्चे वीरनिर्वाण संवत्मां १३ वर्षना तफावतनुं कारण बन्यु' ते पण विचारणीय छे. केम के -
१. आ गाथा फक्त मेरुतुङ्गीय विचार श्रेणिना परिशिष्टमां मळे छे. तेथी अटली प्राचीन न होई शके के छेक वीरनिर्वाणना दसमा सैकामां ओना अर्थनी विस्मृति बे वाचनाओमां मतभेद- कारण बने. आमे अेक गाथाना अर्थनुं विस्मरण आटला मोटा मतभेद- कारण बने ओम मानवू थोडं वधारे पडतुं छे ज.
२. आ गाथाने आपणे ओना सम्पूर्ण स्वरूपमा जोइशुं तो जणाशे के ओनो वास्तविक अर्थ ज छे के जे वालभी वाचनाकारोओ स्वीकार्यो छे. गाथा -
"विक्कमरज्जाणंतर, तेरसवासेसु वच्छरपवित्ती ।
सिरिवीरमुक्खओ वा, चउसयतेसीइवासाओ ॥"
अर्थ – विक्रमराजाना राज्यारम्भथी १३ वर्ष बाद संवत्सर प्रवो. आ वर्ष श्रीवीरप्रभुना निर्वाणथी ४८३मुं वर्ष हतुं.
माटे वीरनि. सं. ४५७मां विक्रमनो राज्यारम्भ थयो अने त्यारबाद १३ वर्षे वीरनि. सं. ४७०मां संवत्सर प्रवों - आq 'विक्कमरज्जा...' ओ पङ्क्तिनुं तात्पर्य काढq वाजबी लागतुं नथी.
३. उपर कापडिया साहेबना मतना ऊहापोह दरमियान, पट्टावलीओने बदले विक्रम संवत्ना प्रवर्तनना मुद्दे वीरनिर्वाण संवत्मां मतभेद मानवामां जे असङ्गतिओ दर्शावी छे, ते बधी अत्रे मुनिश्रीना मतमां पण लागु पडे तेम छे.