________________
मई २०११
७९
ण्हायंति
ण्हायंति ८५ ५ ०याणत्तहं
०याण तूहं ८६ ८ ०श्वररैद्य सुबो० ०श्वरैरप्यसुबो० रचनायास्तु
रचनयोस्तु ८७ १२ तद् द्वारेण
तद्द्वारेण पृष्ठ ७१, पंक्ति २४ 'त्रयश्चकाराः स्वतः सम्भवन्तीति । न केवलं भणिति०' ने बदले आम वांचवें जोइओ : 'त्रयश्चकाराः । स्वतःसम्भवीति (पृ. ७२ पर मुद्रित अलं.टीकार्नु प्रतीक) । न केवलं....' मतलब के 'न केवलं०'थी शरु थती तमाम टीका ‘स्वतःसम्भवी'नी साथे सम्बन्धित स्वतन्त्र चर्चा छे; ‘सुवर्णपुष्पां०'नी टीका-अन्तर्गत एने समजवानी नथी.
अभ्यास दरमियान डॉ. तपस्वी नान्दीओ करेलो काव्यानुशासननो अनुवाद पण जोवानो थयो. (प्र.- ला. द. विद्यामन्दिर- अमदावाद, L. D. Series-123, ई.स. २०००) आ अनुवाद परत्वे ग्रन्थमालाना सामान्य सम्पादक डो. जितेन्द्र शाहे लख्युं छे : "तेना (-काव्यानुशासनना) प्रमाणभूत अने विद्वत्तापूर्ण अनुवादनी ऊणप वर्ताती हती. ते आ प्रकाशनथी पूर्ण थाय छे." हवे, आ अनुवाद केटलो 'प्रमाणभूत' अने “विद्वत्तापूर्ण' छे, तेना एक-बे नमूना :
१. मंगलश्लोकनी अलं. टीकामां जैनमतानुसार वाणीनुं स्वरूप दर्शावनारी पंक्ति छे : "उच्यत इति वाक, वर्णपदवाक्यादिभावेन भाषाद्रव्यपरिणतिः।" जैनमते, 'भाषाद्रव्य' तरीके ओळखातां विशिष्ट पुद्गलस्कन्धो ज वक्ताना प्रयत्नथी वर्णादिरूपे परिणमे छे अने 'वाणी' तरीके ओळखाय छे. तेथी आ पंक्तिनो अनुवाद आम थायः "जे बोलाय ते वाणी, (आ वाणी अटले बीजुं कशुं नहीं, पण) वर्ण, पद,वाक्य व. रूपे भाषाद्रव्य, परिणमन ज छे." हवे, डो. नान्दीओ करेलो अनुवाद : "जे बोलाय छे ते थई वाणी, जे वर्ण, पद (तथा ) वाक्य रूपे ('आदि' पदनुं शुं थयुं ?) भाषामा परिणमे छे." अमणे जो 'द्रव्य' शब्दने लक्षमां लीधो होत अने जैन परिभाषा तेमज परिपाटीने समजवानो उद्यम को होत तो आवी गम्भीर क्षति न थई होत.