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सप्टेम्बर २००८
के पितर अलग अलग हैं और उनके लिए बनाये जानेवाले अन्नपदार्थ भी अलग अलग हैं । यहाँ पितृगणों की संख्या ३१ कही गयी है । वृक्षसहित सभी योनियों में पितर जा सकते हैं इसका जिक्र किया गया है। 'रुचि' नामक ब्रह्मचारी और पितर इनका विस्तृत संवाद दिया है। इस संवाद में पितर, विरक्त स्वभाव के ब्रह्मचारी रुचि को विवाह और पुत्रोत्पत्ति का महत्त्व बताते हैं । पितृतर्पण की महत्ता पितरों के मुख से ही रुचि को बतलायी है । मनु के जन्म की कथा तथा स्वर्ग में किये गये पितरों का श्राद्ध भी इसमें अंकित हैं । मांसभक्षण का भी इसमें उल्लेख हैं ।
(७) वायुपुराण :
वायुपुराण में पितरों का सम्बन्ध सोमरस से जोडा हुआ है । पितरों के विविध प्रकार दिये हैं । अग्निष्वात्त और बर्हिषद ये पितरों के दो प्रकार प्रायः सभी ग्रन्थों में अंकित हैं । इसके सिवा ७ पितृगणों के भी नाम है । ७ (८) मत्स्यपुराण :
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मत्स्यपुराण में पितरों के दिव्यरूप, दिव्यमाला, अलङ्कार तथा कामदेव समान कान्ति का उल्लेख है । यहाँ भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र ऐसे चार प्रकार के पितर दिये गये हैं । 'धार्मिक पितर स्वर्ग से भी ऊपर के ज्योतिष्मत् नाम के स्वर्ग में बसते हैं ' ऐसा कथन किया है ।" ( ९ ) कूर्मपुराण :
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कूर्मपुराण में कहा है कि श्राद्ध के दिन पितृगणों का उस स्थान पर अवतरण होता है । वे वायुरूप में स्थित होते हैं । ब्राह्मणों के साथ भोजन करते हैं। भोजन के उपरांत परमगति को प्राप्त होते हैं । श्राद्धविधि करानेवाले ब्राह्मणों के बारे में यहाँ कुछ निकष दिये हैं। अगर विप्र दुष्ट है तो पितर पापभोजन करता है और अगर विप्र कलही है तो मलभोजन करता है ।"
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इस प्रकार कुछ प्रातिनिधिक ग्रन्थ चुनकर पितरविषयक विचारों का
६. मार्कण्डेयपुराण अध्याय २८ से ३० तथा अध्याय ९२ से ९४
७. वायुपुराण ३८.८, १६, १७, २२, २३, २७, ५९, ६१, ६२, ८५ से ८८
८. मत्स्यपुराण अध्याय १४, १५, १६
९. कूर्मपुराण द्वितीय खण्ड, अध्याय २१, २२
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