________________
October-2007
हवे, वनस्पतिमांथी नीकळी सीधा मनुष्य थई मोक्षे जवानुं उदाहरण मळे छे परंतु पृथ्वी - अप्कायनुं नथी मळतं. अने जैनो, व्यवहार राशिमां रहेल पृथ्वी - अप्कायने छोडी व्यवहार- निगोदमां रहेल वनस्पति जीवनी, आवी उच्च परिस्थितिनुं कथन करती कथा लखे ते विचारणीय छे. विकलेन्द्रिय जीवोनी कक्षा पण निगोदना जीव करतां अहीं नीची देखाडी छे. कारण के तेओ अनन्तर भवमां मनुष्यत्व पामवा छतां केवलज्ञान / मोक्ष नथी पामी शकता.
मरुदेवी नित्यनिगोदमांथी सीधां आव्यां छे तेवा उल्लेखवाळी कथा आगमेतर साहित्यमा वधारे जोवा मळे छे, पण आगमो अंगोमां तेनो उल्लेख मात्र स्थानाङ्ग सूत्रमां ज छे.
३७
स्थानाङ्ग सूत्रना चोथा स्थानमां चार अन्तक्रियाओनी वात करी छे तेमां आ उल्लेख छे.
प्रथम अन्तक्रिया, पूर्वनां कर्मों घणां ओछां होवाथी जे अल्पकष्टथी ज मोक्ष मेळवे तेवा संसारत्यागी अणगारने होय छे. उदा: भरत चक्रवर्ती. द्वितीय अन्तक्रिया, पूर्वनां कर्मो घणां होवा छतां घणां कष्टो सहन करी जे अल्पकालमा ज मोक्ष मेळवे तेवा अणगारने होय छे. उदा: गजसुकुमाल.
तृतीय अन्तक्रिया, पूर्वनां कर्मों घणां होय अने तेने घणा काळ सुधी सहन करीने खपावे तेवा अणगारने होय छे. उदा: सनत्कुमार चक्रवर्ती.
चतुर्थ अन्तक्रिया, पूर्वनां कर्मो घणां ओछां होय त्यारे ओछा समयमां तेवा प्रकारनां तप कष्टो सहन कर्या विना ज खपावे तेवा अणगार ने होय छे. उदा: मरुदेवी.
--
अहीं मूळ सूत्रमां क्यांय मरुदेवीना पूर्वभवनो उल्लेख कर्यो नथी. परन्तु तेनी वृत्तिमां अभयदेवसूरिए तेनो उल्लेख कर्यो छे तथा समाधान पण आप्युं छे के व्याख्या तथा उदाहरणमां सम्पूर्ण साधर्म्य न मळे.
आवश्यक निर्युक्तिमां मरुदेवीना प्रसंगने ५०० अबद्ध आदेशोमांनो एक आदेश मानेलो छे :
" एवं बद्धमबद्धं आएसाणं हवंति पंचसया ।
जह एगा मरुदेवी अच्चंत थावरा सिद्धा ||१०२३|| "
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org