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स्वाध्याय : श्रीमेरुतुङसरिना 'प्रबन्धचिन्तामणि'मां वर्णित
केटलीक ध्यानपात्र बाबतो
प्रबन्धसंग्रहो ए गुजरातना इतिहासनी जाणकारी पामवा माटेनां अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अने उवेखवां न पालवे तेवां साधनो छे. जैन मुनिओए लखेला आ प्रबन्ध-ग्रन्थो न होत तो गुजरातनो इतिहास घोर अन्धकारमा ज अटवातो होत - एम कहेवामां कोई अतिशयोक्ति नथी ज.
आ संग्रहोमां 'प्रबन्धचिन्तामणि', स्थान आगq छे. पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजीए आ ग्रन्थ- श्रेष्ठ संपादित संस्करण सिंघी ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित करीने बहु मोटुं प्रदान कर्यु छे. जो के 'प्रबन्धचिन्तामणि' माटे तेओए एक प्रकल्प आयोज्यो हतो, अने तदनुसार, आ ग्रन्थनुं सर्वाङ्गी अध्ययन कुल पांच भागोमां आपवानी तेमनी अभिलाषा हती, जेनो निर्देश प्रकाशित प्र.चिं. नां प्रारंभनां पृष्ठोमां प्राप्त छे. दुर्भाग्ये, आ प्रकल्प पूरो नथी थयो जणातो. जो थयो होत. तो कांईक नवं ज नवनीत मळ्युं होत.
अत्रे, मुद्रित प्र.चिं. नो स्वाध्याय करतां केटलीक वातो ध्यानार्ह तथा ममळाववा जेवी तथा सहुने चखाडवा जेवी लागी, तेवी वातो विषे नोंध करवामां आवे छे :
(१) श्री सिद्धसेन दिवाकरजीए ३२ बत्रीशी रच्यानुं प्रसिद्ध छे. श्री हेमचन्द्राचार्ये पण त्रणेक बत्रीशी बनावी छे, जेमां एक छे महादेवबत्रीशी : जे अत्यारे प्रक्षेपो साथे ४५ पद्यप्रमाण प्रचलित छे. आ महादेवबत्रीशीर्नु प्रथम पद्य 'प्रशान्तं दर्शनं यस्य" ए छे. हवे प्र.चिं. मां जोवा मळती एक पादटीप वांच्या पछी मनमां सहज प्रश्न ऊभो थाय छे के आ पद्य हेमाचार्यहशे के दिवाकरजी- हशे ?
मने, दिवाकरजीनी उपलब्ध १९ बत्रीशीमां महादेव द्वात्रिंशिका छे के नहि ?- छे तो ते आजे पूरेपूरी उपलब्ध छे के केम ? आ अंगे आ
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