________________ अनुसन्धान-५७ शिवचंदकृत (5) विजय जिनेन्द्रसूरि भास गाम नगर पूर वीचरता रे, आव्या धीरपूर नगर मोझार // 1 // सखी वधावाने सहगुरुरे, श्री विजय जैनेन्द्र सर तपगच्छनायक अभिनवा रे, दिन दिन चढते नूर. स० // 2 // वीर जनंदने वंदवा रे, वली करवा निरमल देह चतुरविध संघने वंदाववा रे, आव्या अधिक सनेह सः // 3 // सा हरचंद कुल सेहरो रे, मात गुमाननो जाता पाट दीपाव्यो सूरी धर्मनो रे, गुरु दीनदयाल गुणपात्र. स. // 4 // संवत अढार समे त्रेपने रे, चैत्र वद दसमीउ जाण घणुं जीवज्यो कहे उत्तमचंदनो रे, शिवचंद गुरु गुण खांण स० // 5 // इति भास संपूर्ण