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डिसेम्बर २०११
छे, अने ओटले ज आश लगावीने बेठो छं. कवि अंते कहे छे के मने तमारो बनावी, तमारा चरण - कमळमां स्थान आपो. भवोभव बोधि बीजनो लाभ पामतां हुं अवश्य मोक्षसुखने पात्र बनुं पछी मने मोक्षसुख आपजो.
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प्रस्तुत स्तवनमां कविश्रीनी मोक्षसुखनी झंखनानुं सुंदर निरूपण थयेलुं छे. श्री मुनिसुव्रतनाथ तेमना आराध्य जिनेश्वर छे. भगवान साथे रीस करी, (मारा- तमारा तमे शेणे करो छो ?) अनेकोने मोक्षनो लाभ आप्यो छे तो पोताने य एमनो ज गणी, मोक्ष आपे एवी अपेक्षा जाहेर करे छे.
(३)
प्रस्तुत कृति हरियाळी स्वरूपनी छे. आ स्वरूपमां गूढार्थ होय छे. देखीतो विरोध लागे पण अनो अर्थ समजातां बधुं स्पष्ट थाय. उखाणुं के प्रहेलिका जेवुं आ स्वरूप छे.
अहीं अरिहंत, सिद्ध के केवलज्ञानीनी वात होय तेम लागे छे. अना बधा अर्थो हुं समजावी शकती नथी. विद्वानो तेना अर्थ अंगे प्रकाश पाडे तेवी विनंति.
(४)
पं. भावसागरना शिष्य ललितसागरनी आ रचना छे. कषायने विषय बनावी घणी सज्झाय बनी छे तेवी अहीं लोभनी सज्झाय छे.
लोभ अ दुर्गतिनो दाता छे. संसारमां लोभ घणो बूरो छे आथी, लोभने त्यजवो जोइओ. आ माटे अनेक उदाहरणोथी वातने स्पष्ट करवामां आवे छे. लक्ष्मीपति विष्णु अतिलोभने कारणे सागरे निवास पाम्यो. सुवर्णमृगना लोभथी दशरथपुत्र रामे सीताने गुमावी अने ते कारणे ठामोठाम भटकवुं पड्युं.
दसमा गुणस्थानक पर्यन्त लोभनो कषाय जीवने नडे छे. लोभथी परिग्रह थाय अने परिग्रह जीवने घणुं दुःख आपे छे. जो लोभनो त्याग करवामां आवे तो सुख सांपडे. जीव देव, दानव के राजा बने छे के त्यागथी मुक्ति मेळवे छे. ईश्वरप्राप्तिनो - मोक्षनो केवल आ ओक ज रस्तो छे - लोभ त्यजो.
आम अहीं लोभकषाय मोक्षमार्गमां केवो अन्तरायरूप छे, छेक दसमा गुणस्थानक पर्यन्त साथे ने साथे ज रहे छे अने अथी अने महाचोर गण्यो