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अनुसन्धान-५६
विगतो मळे छे. मुरीबाई दशा - श्रीमाळी वणिक श्रीरतनशा अने अमृतबाईथी थयेल पुत्री छे. तेओ वढवाणमां रहेता हता. मुरीबाई रूपे अने गुणे अजोड हतां. पिताने प्राणना आधार सम हतां. आज्ञांकित होवाथी माता - पिताने खूब वहालां हतां. बाळपणथी ज पूर्वपुण्यना संस्कारो जागृत थया होय ते धर्मने पामेलां हतां धर्ममां अनन्य रुचि हती.
बीजा मास (भादरवा)मां मुरीबाईनी यौवन अवस्थानुं वर्णन छे. कोठारी नानजी साथे लग्न थया. ओरमाया सन्तान होवानी वात छे, जेथी नानजी कोठारी बीजवर होवानुं जणाय छे. संसार मांड्यो छे पण मनमां वैराग्य वसेलो छे. रंगभोगनी वात तेने रुचती नथी. भक्तिमां सदा तल्लीन रहे छे. सदा तप-आयंबिल के उपवास करती रहे छे. साधु-साध्वीने सूझतो आहार वहोराववो गमे छे. अषाढ मासमां जेम मेघ मुशळधार वरसे छे तेम मुरीबाई धर्मकार्योमां
(खोडाढोरने खाण आपवुं गरीबगुरबांने दान आपवुं, पतिनी संपत्तिनो अनेक जरूरियातोने दान आपी योग्य उपयोग करवो) व्यस्त रहे छे. घरमां ओरमान सन्तानोने पोतानां करी लीधा छे. ओमनी आंख क्यारेय मानी याद आवी भीनी न थाय ते जुभे छे.
त्रीजा (आसो) मासमां मुरीबाईनो आन्तरिक वैराग्य विशेष दृढ थतो वर्णव्यो छे. सदा उपाश्रये जती रहेती होवाथी, संसारमां ओने हवे कशी आशा जणाती नथी. ‘संसार चार दिवसना चांदरडा जेवो छे, कठपूतळीनो खेल छे, ओ ज्यां कर्मना मार्या नचावे तेम नाचवानुं छे. सगावहालां घणां छे पण अन्त समये तो कोई साथे आवनार नथी तेथी आ संसार- दावानळमांथी - बळतामाथी
मने बहार काढवी जोईओ' अवुं मंथन शरू थाय छे. उपाश्रयमां आठे पहोर आवी, सती-साध्वीनां चरणो सेवे छे. बीजी बाजु, मोह-ममता छोडी, धननो छूटे हाथे दान आपवामां, साधर्मिक भक्तिमां, विकलांग प्रत्ये विशेष वहाल दर्शावी, अनेक जीवोने शाता पहोंचाडे छे.
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त्रीजा महिनामां संसारना जूठा स्वरूपने ओळखी, मुक्त थवानुं मन्थन चालतुं बताव्युं हतुं. हवे चोथा (कारतक) मासमां से मार्गे प्रयाण थाय तेवी, करणीमां परिवर्तित थाय छे. सतत अरिहन्त देवनुं ध्यान करे छे. वस्त्रो पहेरवामां सादाई आवी. शणगारनो त्याग कर्यो. विषय- कषाय छोड्या. खावा