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ऑगस्ट २०११
'सिवराज' तरीके उल्लेख छे. ' बारमास' नी प्रत मळी नथी तेथी बन्नेना वधु पाठ-भेद नोंधी शकाता नथी.
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शीर्षक सूचवे छे तेम आ कृतिमां लोंकागच्छना (स्थानकवासी) साध्वी-महासतीजी -मुरीबाईना तप- शीलना गुण गाती जीवन झरमरने बार - मासी स्वरूपमां आलेखाई छे. लिप्यन्तर करती वखते 'ष'नो ज्यां ख थतो होय त्यां सीधो 'ख' करवामां आव्यो छे. शब्दान्ते अनुनासिक होय तो आगलो वर्ण अनुस्वार ले छे, (जेमके - रतन - रतंन / जाणुं - जांणुं) अ भाषाकीय वलण नोंधनीय छे.
मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां 'फागु'नी पेठे बारमासी स्वरूप खूब ज खेडायुं छे. अधिक मासवाळु वर्ष होय तो ते 'तेरमासा' तरीके पण ओळखाय छे. मोटे भागे जैन कविओओ नेम - राजुल के स्थूलिभद्र - कोशाना जीवनवृत्तान्तने पसंद कर्तुं छे. मुख्यतः तेमां बारे मासना विशिष्ट वर्णन साथे नायिकाविरह आलेखायो छे. सामान्यतः अन्त मिलनथी आवे छे. सं. १६४९मां श्रीउदयरत्ने 'नेमिनाथ तेरमासा' लख्या छे.
प्रस्तुत कृति अना स्वरूपलक्षणोनी रीते जुदी पडे छे. अहीं नायिकानो विरह अने अन्ते मिलन वर्णवाया नथी, पण प्रत्येक महिने श्रीमुरीबाई संयमना मार्गे केवी रीते आगळ वधे छे तेना विकासना सोपान आलेखाया छे. महिनाओनुं विशिष्टता साथेनुं प्रकृतिवर्णन अहीं गेरहाजर छे.
ओक श्रावके साध्वीजीना जीवनने आलेख्युं छे. ओमां दरेक महिने अमनो तप-जपना मार्गे थतो आध्यात्मिक विकास अन्ते संथारो ग्रहण करवा पर्यन्त पहोंचे छे तेनी वात करी छे. कवि पोते पण जैन धर्ममां श्रद्धा राखनारा छे. पोताना घरनी सामे ज, जीवणभाई शेठ अने झमकु शेठाणीओ 'थानक' (स्थानक) बनाव्युं होवाथी, कविना दिलने अत्यन्त आनन्द उपजे छे. ते समये वखतचंद राजा राज्य करतो हतो तेवी औतिहासिक माहिती पण अहीं मळे छे. कवि पोते स्थानकवासी जैनमतमां ऊंडी श्रद्धा धरावनारा अने धर्मानुरागी श्रावक होवानुं उपरोक्त माहिती जणावे छे.
प्रस्तुत रचनाना प्रत्येक मासमां कुल ४-४ गाथाओ छे. श्रावण मासथी तेनो प्रारम्भ थाय छे, जेमां मुरीबाईना जन्मस्थळ अने मातपिता तथा बाळपणनी