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'चोवीश-जिन-नमस्कार (अष्टमी-माहात्म्य-गर्भ) (वाचक यशोविजय कृत)
-सं. शीलचन्द्रविजय गणि वाचक यशोविजयजीनी घणीबधी प्राप्त गुर्जर रजनाओ "गूर्जर साहित्य संग्रह (सं. मो. द. देसाई) १-२'मां तथा अन्यान्य स्थले प्रगट थइ छे. छतां हजी क्यांक क्यांक भण्डारोमाथी तेओनी कृतिओ मळी आवे तेवी संभावना अवश्य छे. मित्र मुनिराज श्रीधुरन्धरविजयजीना ध्यान पर ताजेतरमा ज एक आवी रचना आवतां तेमणे मने मोकली, जेनी प्रतिलिपि अहीं प्रस्तुत छे.
२४ कडीनी आ कृतिमां ऋषभदेवथी वीरजिन पर्यन्तना २४ तीर्थकरोनी स्तुति तो छे, परंतु ते स्तुति पाछळनो मुख्य आशय अष्टमीना-आठम तिथिना तपर्नु माहात्म्य वर्णववानो जणाय छे. प्रत्येक कडीमां तीर्थंकर नाम, तेमनुं लांछन (चिह्न) अने अष्टमीतपनो महिमा -आ त्रण मुद्दा गूंथी लेवामां आव्या छे. पोते सिद्धहस्त कवि छे. एटले सामान्य जणाती कृतिमां पण कल्पनाविहारनी साथे साथे योग अने साधनाना प्रदेशनी वातो सहजपणे वणायेली जोई शकाय छे. (कडी ६, ११-१६)
. आनी एक ज प्रति मळी छे. 'तेनी लखावट जोतां १८ मां शतकमां लखाई होवानी अटकळ करी शकाय तेम. छे. २ पत्नी प्रति, प्रांते थएला उल्लेख अनुसार 'सूरत'मां लखायेली छे.
ऐं नमः॥ वृषभलंछन आदि जिणंद, प्रतपो मरुदेवीनंद। अट्ठमि-तप विघन निवारि, उपदेसि त्रिभुवन तारिं ॥१ गजलंछन वंछित-दाता, दिओ अजित भविकनें शाता। अट्ठमि-तप ध्यान पडूर, करें आठइ भय चकचूर।।२ हयवर-लंछन पय सोहइं, संभवजिन तिहुअण मोहई।
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