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________________ (43) . ए पंचेउ अ ए कारण जोगि, पगइ पमुह चउ भेअ इम। बंधवी ए अठ ए कम्म, हउं भमिउ भवि चक्क जिम / / 23 इणि भवि ए आविउ देवस पुग्नवसिई तुह, पयसरणि ! तिम करउ ए सासइ सेव, तुह जिम हुइ भवजलतरणि // 24 जोणिहिं ए लक्ख सत्त, सत्त पुढविअ पय पावय पवणि / चउदह ए दह लक्खाणि, अणंतकाईअ पत्तेअवणि॥ 25 विगलह ए दो दो लक्ख, चउ चउ नारय तिरिअ सुरे। मणुअह ए चउदस मेलि, फिरिउ चुलसी लक्ख पुरे॥ 26 पुढवीअ ए आयह तेउ, वाय वणस्सइ विगलभव। बारह ए सत्त ति सत्त अडवीसा सत्तट्ठ नव।२७ जलचर ए नह-थलचारि, उरग-भुअंगह अहिजुअल / सड्ढा ए बारह बार, दस दस नव लक्ख कोडिकुल।। 28 देवह ए नारय लक्ख, छव्वीसा पुण वीस पुण। मणुअहं ए बारह लक्ख, कुल कोडी अ सेत्तुंजजिण // 29 एक ज ए कोडाकोडि, साढा लाख सत्ताणवए। एतीअ ए हडं कुल कोडि, प्रभु भमिउ भवि नव नव ए।। 30 दोसलउ ए राउलउ, वेउ अरि वेला जिम जिहिं वहए। च्यारई ए चउ चउ भेअ, कोहाइय गिरिकुल रहए॥ 31 पांचय ए विसयला चोर, माछलडा मय उछलई ए। तिणि भविअ ए जलहि पडंति, तुम्हि प्रभु पवहण लद्ध मई ए 32 इय रिसह जिणवरु, सिद्धि सयंवर, सुंदरी वर सुंदरो। सिरि विमलभूधर, धवल सिंधुर, खंधवास, पुरंदरो।। 33 सेवई सुभासुर, व्युणिअ भासुर, गुरु भवासुर गंजणो मह, सुविहि वासण, दिसउ सासण, विजय तिलय निरंजणो।। 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229607
Book TitleShatrunjaya mandan Rushabhdev Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanchandravijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size254 KB
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