________________
(४२)
पज्जत्तापज्जत्त हूअ, अट्ठाणु अ सउ भेअ। देवत्तणि हउं' फिरिअ, लद्ध न तुह मई भेअ ।। ११ आभिग्गह अणभिग्गहिअ, अहिलिवेस संपत्त। संसय अन्नाण य जाणिअ, पंच भेअ मिच्छत्त ॥ पुढवि दगागणि-पवण -वण तस छ जीव निकाय इग-दु-ति-चउ-पचिदि मण, अविरय बारस जाय॥१३ कोहाइय सोलस हवई हासाइय छ-ब्भेअ। तिन्न वेय पणवीस इय, सयल कसाय सभेअ॥१४ सच्चु-असच्चउं मीसु तह तुरिअ सच्चासच्चु । मण जिणि परि तिणि परि वयण, चउ चउ जोगपवच्चु ।।१५ उरल उरालिय मीस पण, वेउव्विअ तम्मिस्स। आहारग तस मिस्स जुअ, कम्मणु सत्त तणुस्स १६ नाणावरणह पंच नव, दंसणि दुन्नि अ वेअ। अठवीस पुण मोहणिअ आउतणा वउ भेअ॥ १७ नामि तिडुत्तर एग सय, गुत्तह दुनि य भेअ। अंतराय-पंचय सहिअ, अठावन्न सउ एअ॥ १८ सागर संखा मोहणिअ, सत्तरि कोडाकोडि। नामह गोअह बिहुं भणी अ, वीस वीस ते जोडि।। १९ तीस तीस नाणावरण, पमुह बिहुँ तिहि हुंति। तित्तीसं सागर ठिइ अ, आउअ कम्म कहति ।। २०
(भाषा) महुरहिं ए महुरतरेण, अइमहुरिहिं सोहणरसिहि। कडुईहि ए कडुअतरेण, अइकडुई(हिं) कसमलकसिहि ।।२१ सामल ए मीस सर्वव, अइ उज्जल पुग्गलदलिहि। लहुउलई ए अइलहुइवि गुरुई अङ्गुहि बलिहिं।। २२
१. बहु। २. अ समेअ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org