________________
जुलाई- २००७
षड्भाषामय श्रीऋषभप्रभस्तव के कर्त्ता श्री जिनप्रभसूरि हैं
म० विनयसागर
अनुसन्धान अंक ३९ पृष्ठ ९ से १९ में प्रकाशित षड्भाषामय / अष्टभाषामय श्रीऋषभप्रभुस्तव अवचूरि के साथ प्रकाशित हुआ है । इसके सम्पादक मुनि श्री कल्याणकीर्तिविजयजी हैं । संशोधन और शुद्ध पाठ देते हुए इस स्तव को प्रकाशित कर अनुसन्धित्सुओं के लिए प्रशस्ततम कार्य किया है, इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं ।
इसके कर्त्ता के सम्बन्ध में (पृष्ठ १०) सम्पादक ने अनुमान किया है कि इसके कर्त्ता ज्ञानरत्न होने चाहिए, जो कि सम्यक् प्रतीत नहीं होता
1
इस स्तोत्र का ३९ वाँ पद्य "कविनामगर्भं चक्रम्" अर्थात् चक्रबद्ध चित्रकाव्य में कर्त्ता ने अपना नाम गुम्फित किया है। जो कि चक्रकाव्य के नियमानुसार इस प्रकार है :
रं
चि
सु वि
न्या
Jain Education International
यां
3
5.
Ja
न
FAKE NGE
र
दा
7,
भ
ल
Ft =
上
बज
ल ज्ञान
世
?
शुभतिलकक्लृप्तोऽसौ भाषास्तवः
For Private & Personal Use Only
८३
रमा
प्रां
www.jainelibrary.org