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फेब्रुआरी - २०१२
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श्री रत्नविजयजी रचित
दो स्तवन
इस लेख में श्री रत्नविजयजी रचित दो स्तवन दिए जा रहे हैं । प्रथम तो श्री कृष्णगढ़ स्थित श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ का है और दूसरा रतलाम मण्डन श्रीऋषभदेव स्वामी का है ।
__ श्री रत्नविजयजी किस गच्छ के थे? और किसके शिष्य थे? इस सम्बन्ध में मुनिराज श्री सुयशविजयजी और सुजसविजयजीने 'सचित्र विज्ञप्तिपत्र' शीर्षक से जो लेख लिखा है उसके आधार पर श्री रत्नविजयजी की विजयशाखा को देखते हुए ये तपागच्छीय थे और उन्होंने अनुमान किया है कि श्री तपागच्छ श्रमण वंशवृक्ष पृष्ठ ७ अमीविजयगणि के शिष्य श्री रत्नविजयजी का नाम प्राप्त होता है। श्री रत्नविजयजी के दो शिष्य हुए, मोहनविजय और भावविजय । भावविजय के शिष्य आचार्य प्रवर श्री विजय नीतिसूरि हुए, अतः उन्होंने यह अनुमान किया है । श्री नानुलाल नाम के विद्वान् के द्वारा लिखित सचित्र विज्ञप्ति पत्र के कर्ता यही रत्नविजयजी हैं। किन्तु इन दोनों स्तवनों को देखते हुए श्री रत्नविजयजी तेजविजयजी के शिष्य श्री शान्तिविजयजी के शिष्य थे । और इनका समय भी समकालीन है अतः यही रत्नविजयजी प्रतीत होते हैं न कि आचार्य प्रवर श्री नीतिसूरिजी के पूर्वज।
श्री रत्नविजयजी को लिखे गये संस्कृत विज्ञप्ति पत्र में भी उनके गुरु का नाम नहीं है । इसके अतिरिक्त मेरे संग्रह में जो इस सम्बन्ध में दो विज्ञप्ति पत्र और एक पत्र है उसमें प्रथम विज्ञप्ति पत्र संवत् १९१० का है जो ग्वालियर भेजा गया है, उसमें भी गुरु का नाम नहीं है । दूसरे विज्ञप्ति पत्र में जो किशनगढ़ से संवत् १९१४ में लिखा गया है, उसमें यह लिखा है कि- श्री किशनगढ़ में इनका चातुर्मास था । तीसरे पत्र में भी जो कि मकसूदाबाद से प्रतापसिंह लक्ष्मीपतसिंह दूगड़ की ओर से लिखा गया है उसमें भी गुरु का नाम नहीं है । अतः नामसाम्य से और समयकाल भी एक होता है, इस दृष्टि से यह कल्पना कर सकते हैं कि- रत्नविजयजी शान्तिविजयजी के शिष्य थे । ये अच्छे विद्वान् थे, क्रियापात्र थे, चारित्रनिष्ठ थे और