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अनुसन्धान ५० (२)
विषय अकनो ओक ज होय छे, परंतु निर्विकल्प प्रत्यक्ष द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य वगेरे बधा पदार्थोने अविभक्तरूपे ग्रहण करे छे, ज्यारे सविकल्पक प्रत्यक्ष ते ज पदार्थोने विभक्तरूपे ग्रहण करे छे, अने पहेलां निर्विकल्प प्रत्यक्ष या बोध थाय छे अने पछी सविकल्प प्रत्यक्ष या बोध थाय छे. अहीं बीजी ओक रसप्रद बाबत नोंधवी जोईओ के योगीओनी बाबतमा पहेलां सविकल्पक ध्यानमां (सविचार ध्यानमां) सविकल्पक या सविचार बोध थाय छे अने पछी निर्विकल्पक ध्यानमां (निर्विचार ध्यानमां) निर्विकल्पक या निर्विचार बोध थाय छे. योगीओनी बाबतमां ज्ञान पहेलां अने दर्शन पछी ओवो ऊलटो क्रम होय छे अम कहेवामां कोई बाध नथी.
ज्ञान-दर्शननी समस्याना उकेल माटे जैन चिन्तकोओ अन्य भारतीय दर्शनोमां ज्ञानरूप बोध अने दर्शनरूप बोधनो भेद स्वीकारायो छे के नहि अने जो स्वीकारायो होय तो ते भेदनो आधार शो छे, मेनो विचार को नथी. पोतानी दार्शनिक समस्याओना उकेल माटे बीजा भारतीय दर्शनोनो अभ्यास करवानुं अने तेमांथी सहाय मेळववानुं जैन चिन्तको अने संशोधकोने माटे आवश्यक छे. तुलनात्मक दृष्टिनी जरूर छे. आधुनिक चिन्तकोमा पण्डितश्री सुखलालजी आ बाबतोमां अनुकरणीय दृष्टान्त पूरुं पाडे छे.
सांख्य-योगमां तो ज्ञान-दर्शननो भेद ऊडीने आंखे वळगे अवो छे. चित्त अने पुरुष बे अलग तत्त्वो छे. चित्त ज्ञाता छे अने पुरुष दृष्टा छे, चित्तने ज्ञान छे अने पुरुषने दर्शन छे. चित्त जे ते विषयना आकारे परिणमी ते विषयने जाणे छे. चित्तना विषयाकार परिणामने चित्तवृत्ति कहेवामां आवे छे अने आ चित्तवृत्ति ज ज्ञान छे. घटाकार चित्तवृत्ति ज घटज्ञान छे. चित्तवृत्तिनुं प्रतिबिम्ब पुरुषमां पडे छे. चित्तवृत्तिनुं प्रतिबिम्ब झीलवू ओ पुरुष द्वारा चित्तवृत्तिनुं दर्शन छे. घटाकार चित्तवृत्तिनुं प्रतिबिम्ब पुरुषमां पडवू ओ ज घटाकार चित्तवृत्तिनुं पुरुष द्वारा दर्शन छे. चित्तवृत्ति जेवी उत्पन्न थाय छे तेवू ज ते चित्तवृत्तिनुं प्रतिबिम्ब पुरुषमां पडे छे. चित्तवृत्ति ओक क्षण पण पुरुषथी अदृष्ट रहेती नथी, सदा दृष्ट ज रहे छे. "सदा ज्ञाताश्चित्तवृत्तयस्तत्प्रभोः पुरुषस्य.... ।" - योगसूत्र ४.१८. चित्तवृत्ति विना चित्तवृत्तिनुं दर्शन संभवतुं नथी, ज्ञान उत्पन्न थया विना दर्शन उत्पन्न थतुं नथी, आ अर्थमां तार्किक क्रम ज्ञान अने दर्शन वच्चे छे