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अनुसन्धान ५० (२)
मळता नथी. मीराबाइओ वळतुं कहेवडाव्युं के हुं तो समजती हती के समग्र ब्रह्माण्डमां अक ज पुरुष छे, बाकी बधी गोपीओ छे, आ बीजो पुरुष कोण छे से मने समजावशो. मीराबाईना शब्दोथी गोस्वामीनुं पुरुषाभिमान गळी गयुं अने मीराने वन्दन करवा सामे गया. सर्व मरमी सन्तो भेदोना, ऊंचनीचना प्रखर विरोधी रह्या छे.
आनन्दघन निजानन्दी, ब्रह्मविहारी, आतमरस पीनार मरमी छे. ओटले तेमनुं जीवन सहज छे, मुक्त छे, मस्त छे. ते रूढिबन्धनोने गांठता नथी, तेमने तोडी मुक्त बने छे. तेमने लोकलाजनी परवा नथी. 'लोकलाज सूं नहि काज. ' ते अनादि अनन्तमां खेले छे, ते बेहदना मेदानमां रमे छे.
आनन्दघनजी चिन्तक न होवा छतां जे जैन चिन्तनधारामां ते थया छे ते चिन्तनधाराना ख्यालोने, विचाराने ते प्रस्तुत करे छे. आ विचारो तेमनां जिनस्तवनोमां विशेषे अभिव्यक्ति पामे ओ पण स्वाभाविक छे. मरमीना अभेददर्शननो, निरुपाधिक सात्त्विक प्रेमनो, वैचारिक अहिंसानो पोषक अनेकान्तवाद तेमने सौथी वधु आकर्षे छे. सर्व दृष्टिओ, दर्शनो, विचारधाराओनो समन्वय अनेकान्त छे. तेथी, कोई पण विचारधारानो अनादर जैनने मान्य न होय चार्वाक के कार्ल मार्क्सनी भौतिकवादी विचारधारानो पण नहि. ओटले ज तो आनन्दघनजी कहे छे
" षड्दरिशन जिनअंग भणी जे, न्याय षडंग जो साधे रे । नमिजिनवरना चरणउपासक, षड्दरिशन आराधे रे ॥१॥
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लोकायतिक कूख जिनवरनी....
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अहीं षड्दर्शन अ तो उपलक्षण छे, तेथी उपलब्ध सघळां दर्शनो समजवानां छे. अनेकान्तवादनुं के आनन्दघनजीना कथननुं रहस्य ऊंडुं छे. ते आ छे : जैनदर्शन स्वयं अक दृष्टि नथी पण बधी दृष्टिओनो समन्वय छे. अने दृष्टिओ (नयो) अनन्त छे, तेनो कदी अन्त थवानो नथी, कालक्रमे दृष्टिओ वधती अने विस्तरती ज रहेवानी छे. आमांथी अ फलित थाय छे के जैनदर्शन closed system नथी, बन्ध थई गयेली सिस्टम नथी, पूर्ण थई गयेली System नथी, पण सदा विकसती ज रहेवानी छे, कदी पण Closed