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मार्च २०१०
ज्योति’ जगववा, ‘निर्विकल्प रस' पीवा, 'सहज सुभाव थिरता' धरवा, ‘अजपा की अनहद धुनि' सुणवा, 'रम महारस' चाखवा, 'अगम पियाला' पीवा, 'नीज परचे सुख' पामवा अने 'चित्तसमाध' माटे मथवा आपणने प्रेरे छे.
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आनन्दघनजीनी अन्तर्दृष्टि खुली गई छे. तेमने सकळ कोठे अजवाळां छे. ते स्वयं सहज सुज्योति सरूप छे. ते बिना ज्योति उजियारा छे. ते स्वयंप्रकाश छे. तेने बीजी ज्योतिनी आवश्यकता नथी. बुद्धिना प्रकाशनी तेने जरूर नथी. बुद्धिनो प्रकाश भेदक छे, भेद प्रगट करे छे, अने भेद भय, शोक अने मोहनो जनक छे. "द्वितीयाद् वै भयं भवति । तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः ।” जे भेदने देखे छे ते मृत्युनी परम्पराथी मुक्त थतो नथी. “मृत्योः मृत्युमाप्नोति य इह नानात्वमनुपश्यति ।" जे आत्मप्रकाश छे, अन्तःप्रज्ञा छे, अन्तर्ज्योति छे ते अभेदने प्रगट करे छे, अभेदने नीरखे छे. अभेद भय, शोक अने मोहनो नाशक छे. आ अभेदनो साक्षात्कार आनन्दघनजीना आ शब्दोमां व्यक्त थाय छे : "राम कहो रहमान कहो कोउ, कान कहो महादेव री. पारसनाथ कहो कोउ ब्रह्मा, सकल ब्रह्म स्वयमेव री. भाजनभेद कहावत नाना, अक मृत्तिका रूप री. तैंसें खण्डकल्पना रोपित, आप अखण्ड स्वरूप री." अहीं पण उपनिषदना शब्दो याद आवे छे "वाचारम्भणं विकारो नामधेयं मृत्तिका इत्येव सत्यम् ।" अभेदसाक्षात्कार शुद्ध प्रेमनो जनक छे.
मांथी निरुपाधिक प्रेम ज प्रगटे छे. प्रीतसगाई रे... विकसति... द्रवति.... व्यतिषजति... जे आतम अनुभव रसनो रसियो छे, ते प्रेम कटोरी पीयूष पीओ छे, तेने प्रेमनुं तीर अचूक लागे छे. आतम अनुभवथी प्रगट अभेदमांथी प्रसूत प्रेम ज्यां होय त्यां दुविधा होय नहि. 'प्रेम जहां दुविधा नहीं रे. '
आनन्दघनजी जातपांतभेद, सम्प्रदायभेद, स्त्रीपुरुषभेदनो प्रबळ विरोध करे छे. गच्छभेद से तो उपलक्षण छे. तेनाथी सम्प्रदायभेद, पन्थभेद पण समजवाना छे. 'नहीं हम पुरुषा नहीं हम नारी' ओम कही आनन्दघनजी समजावे छे के आत्मा स्त्री-पुरुषभेदथी पर छे अने जेने आतम अनुभव छे ते पण आ भेदथी पर छे, ते आ भेदने स्वीकारतो नथी. अहीं नानपणमां सांभळेली वात याद आवे छे. मीराबाई वृन्दावन गया. त्यां प्रसिद्ध गोस्वामीने मळवानी ईच्छा थई, मऴवानी रजा मागी. गोस्वामीओ कहेवडाव्युं के पोते कोई स्त्रीने