________________
जून - २०१२
३७
बन्ने प्रतना पाठ परस्पर पूरक बन्या छे. आ प्रत अमने सुश्रावक श्रीबाबुलाल सरेमलजीना प्रयत्नथी मळी छे. अत्रे तेओनो तेमज उपरोक्त बन्ने ज्ञानभण्डारोना व्यवस्थापकोनो हार्दिक आभार मानुं छु. कृतिओनो सङ्क्षिप्त परिचय
प्रथम ४ कृतिओ, मीमांसक जेवा जे दार्शनिको 'सर्वज्ञ'नी सत्ता नथी स्वीकारता तेमना मतनो प्रतीकार करनारी छे. प्रथम कृति श्रीअजितसिंहसूरिविरचित सर्वज्ञसिद्धि छे. आ कृतिमां कक्काना प्रथम १५ अक्षरो क थी ण प्रायः नथी वपराया ते ओनी विशेषता छे. कृतिमां पांचे प्रमाणो द्वारा सर्वज्ञ छे ओम सिद्ध करवामां आव्युं छे. बीजी कृति सर्वज्ञाभावनिराकरण (अपरनामसर्वज्ञसिद्धि)मां पण ज रीते पांचे प्रमाणोथी सर्वज्ञ सिद्ध नथी थता ओ वातनुं निराकरण करवामां आव्युं छे. कृतिना अन्ते अपायेलुं गजविकल्प-दृष्टान्त अत्यन्त रोचक छे. सर्वज्ञव्यवस्थापनावाद अने सर्वज्ञसिद्धि (अपरनामसर्वज्ञव्यवस्थापन) पण विविध युक्तिओथी सर्वज्ञसत्ता सिद्ध करे छे.
धर्मस्थापनस्थल ओक विलक्षण कृति छे. कालकाचार्यनी पोताना शिष्यपरिवारने छोडीने सुवर्णभूमिमां सागरचन्द्र आचार्य पासे चाल्या जवानी कथा जैन संघमां प्रसिद्ध छे. कथामां त्यां गया पछी ओ बे आचार्यो वच्चे केटलाक विषयो परत्वे चर्चा थई अम जाणवा मळे छे, परन्तु ओ विषयो कया ते उल्लेखित नथी. प्रस्तुत कृतिमां सागरचन्द्र आचार्य कालकाचार्यने धर्मचिन्ता करवानी प्रेरणा करे छे. तेना जवाबमां कालकाचार्य 'धर्म' जेवी कोई चीज होती ज नथी ओम कहे छे. आ मुद्दे ते बे वच्चे थयेली चर्चा अत्रे दर्शावी छे. ओम पण बने के कृतिकारे ज आ चर्चाने रोचक बनाववा आचार्योना मुखमां गोठवी होय.
_ 'वागर्थसंस्थापन'मां शब्द अने अर्थ वच्चे कयो सम्बन्ध होई शके ते विशे चर्चा करी योग्यतासम्बन्ध सिद्ध करवामां आव्यो छे. आ कृतिमां उपमानोपमेयभाव विशे पण चर्चा छे.
___ 'अग्निशीतत्वस्थापनावाद'मां अग्निमां उष्णत्व नथी, पण शीतत्व छे ओम युक्तिथी सिद्ध करवामां आव्युं छे. तर्कजालना बलथी केटली विरुद्ध बाबत पण सिद्ध थई शके छे ते दृष्टिले आ कृति अवलोकनीय छे.