________________ January-2003 61 करवो अवो प्रश्न को छे. 'दयिता' शब्द ज भ्रष्ट रूपमा अहीं 'दैता' थयो छे. ललितादेवी वस्तुपालनां पत्नी हतां, ओ सन्दर्भ पण अहीं मार्गदर्शक बने छे. 'निर्ग्रन्थ औतिहासिक लेख समुच्चय' ग्रंथमा श्रीमधुसूदन ढांकीनी विषयनिष्ठा तथा क्षमतानां दर्शन तो थाय ज छे, साथे साथे शुष्क विषयने रसिक बनावती शैली, मानवीय पासाने स्पर्शती दृष्टि, क्यांक गंभीरता तथा क्यांक- रमूजना छांटणां धरावतुं तेमनुं गरवं गुजराती गद्य वाचकना मनमां श्री ढांकीना प्रफुल्ल-प्रखर व्यक्तित्वनी छाप उपसावी जाय छे. प्रस्तुत ग्रन्थ जैन इतिहासना केटलाय बिन्दुओ पर प्रकाश पाथरे छे. ग्रन्थ, वांचन दूर दूरना इतिहासना अगोचर प्रदेशमा स्वैर विहार करी आव्या जेवी अनुभूति वाचकने करावी जाय छे. निर्ग्रन्थ ऐतिहासिक लेख समुच्चय-खंड 1, लेखक : मधुसूदन ढांकी, प्रथम आवृत्ति, 2002, पृ. डेमी आठपेजी 348 + 24, मूल्य : रू. 400. खंड-२, प्रथम आवृत्ति, २००२,पृ. डेमी आठपेजी 304 + 20 +80 आर्टप्लेट्स, मूल्य : रू. 500. प्रकाशक : श्रेष्ठी कस्तूरभाई लालभाई स्मारक निधि, प्राप्तिस्थान : शारदाबेन चीमनभाई एज्युकेशन रिसर्च सेन्टर, 'दर्शन', राणकपुर सोसायटी सामे, शाहीबाग, अमदावाद-३८०००४. जैन देरासर नानीखाखर - 370435 जि. कच्छ, गुजरात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org