________________ 46 सूरमयंकंगारय कमेण दीसंति संठिया जम्मि / कम्मकिलेसो हाणी दुपयाण चउप्पयाणं च // 28 // 312 भाणुजुयलस्स पुरओ जइ दीसइ कहवि कासवीतणओ / ता बोलाणी पि तहुं ठाणं माणं पुणो लहइ // 29 // 332 पुरउ मंगलजुयलस्स जइ रवी होइ तत्थ निच्छयओ / निबुद्धीनिव्वाणं चिय सुहिसयण समागमो होइ // 30 // 223 अंगारयाण जुयलं पुरउ भाणुस्स दीसए जम्मि / तत्थ किर सुक्खहाणी रायभयं होड गरुदुक्खं // 31 // 322 // इति गणधरहोरा समाप्ता // Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org