________________
सप्टेम्बर २००८
तीरथ सवि अवतार तिणि, देवछंद दिप्पंत कारिअ त्रिहुं भूमे भासुर सिहर कोरणी ए सुविशाल दंडकलश सोवनमइ दीसई अतिर्हि झमाल ॥१६।।
॥ ठवणी ॥ चउमुख चिहुं पखि चाहीइ तु भमरुलीभर मह तणु विचार पुतली सोहई ए नवनवी तु भ० जाणे रंभाकार थंभे तोरण धोरणी तु भ० कोरणी दीसई सार मूलमंडपि जव आविआ तु भ० मनमोहइ अपार ॥१७॥ त्रिन्नि चउवीसी जिणइ तणी तु भ० मंडप तणइ वितानि तिहअण सोभा संकली तु भ० जाणे इंद्रविमाण पूतली छइतालीस करई तु भ० नितु नाटक रंगरोल जाणे अपछरदेव तु भ० आविय करई टकोल ॥१८॥ पंच वंन सोहामणी तु भ० गूंहली तलगटि चंग तिहां बइसई कुलकामिनी तु भ० गाई जिण गुणरंगि नितु नितु देस विदेस तणा तु भ० आवई संघ अपार स्नात्र महोत्सव नितु करई तु भ० महाधज दीजइं सार ॥१९।। मेघमंडप ऊमाहडउ तु भ० करिवा लोअणसार त्रिहुं भूमे त्रिभुवन तणा तु भ० जाणे इंहि अवतार कोरणी वरणनई नहीं तु भ० पूतली नानाकार नाटक लकुटी रसरमई तु भ० भवियण त्रिन्हइ वार ॥२०॥
भेरि भुंगल नीसाण तणु तु भ० गाजई गुहिरु नाद गुणगाई घणा तु भ० बइसी मधुरइ सादि त्रिणि त्रिणि मण्डप चिहुं दिसइं तु भ० चुमुखि इणि परिवार देवलोक बारइं किसुं तु भ० अवतरिया खाकई वार ॥२१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org