SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 54 अनुसन्धान ३६ अर्जुन दो स्वतंत्र जीव हैं । और कभी भी एक जीव दूसरे की आध्यात्मिक शक्ति के बारे में हस्तक्षेप नहीं करता । अर्जुन को मर्यादित समय के लिए प्राप्त हुई इस दिव्य दृष्टि की अगर जैन दर्शन के अनुसार उपपत्ति लगानी ही है तो हम अनवस्थित अवधिज्ञान के द्वारा यह उपपत्ति लगा सकते हैं । क्योंकि यह अवधिज्ञान मर्यादित क्षेत्र में, मर्यादित काल में और कभी-कभी होता है ।१५ लेकिन ऐसा मानने में भी आपत्ति है । क्योंकि अनवस्थित अवधिज्ञान के द्वारा भी जीव विश्व का अद्भुत रूप में दर्शन नहीं कर सकता, यथातथ्य रूप में ही कर सकता है । जैन दर्शन के अनुसार यह कुअवधिज्ञान माना जा सकता ( ३.४.५.) संजय और अर्जुन के द्वारा विश्वरूपदर्शन की अपूर्णता संजय और अर्जुन के द्वारा वर्णित विश्वदर्शन में नियोजन तथा सुसंबद्धता का अभाव दिखाई देता है । गीता में ही अनेक जगह प्रकृति की सहायता से विश्वनिर्मिती की प्रक्रिया का विस्तार से क्रमबद्ध वर्णन आता है । कृष्ण कहता भी है कि 'मयाऽध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं' ।१७ अगर ये सच है तो कम से कम चर और अचर याने जंगम और स्थावर सब सृष्टि के कुछ अंश तो निर्दिष्ट होना अपेक्षित है । यहाँ तो प्रायः स्वर्ग के देवताओं का ही विस्तार से बयान है । वनस्पतिसृष्टि, सागर, नदिया आदि निसर्गसृष्टि तथा नरकलोक और तिर्यंच गति के जीव-इनका किंचित मात्र भी उल्लेख नहीं है । इसकी पुष्टि के लिए हम यह कह सकते हैं कि अगर कृष्ण ने समूचा विश्वदर्शन कराया भी है तो अर्जुन ने अपने मर्यादित सामर्थ्य के अनुसार जितनी चीजें देखीं उनका संक्षेप में बयान किया है । इसमें भी कृष्ण का ईश्वर या परमेश्वर होने का दावा है इसलिए देवों का वर्णन है । और युद्धप्रसंग होने के कारण राजाओं और आयुधों का वर्णन है । देवों के वर्णन में भी धावा-पृथिवी, मरुत, इन्द्र, अग्नि आदि वेदकालीन देवता तथा 'वैदिक परंपरा की दृष्टि रखते हुए सृष्टि के निर्माता, धर्ता और संहारकर्ता के रूप में आनेवाले पौराणिक काल के देव भी इसमें वर्णित हैं ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229573
Book TitleShrimad Bhagdwadgita ke Vishwarup Darshan ka Jain Darshanik Drushti se Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size423 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy